सोमवार, 27 जनवरी 2020

तु इस वक्त भी ...

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कभी तेरी ओढ़ी रजाई मुझे गर्माहट दे जाती है 
और 
जेठ की ऐंठन में पहुँचाती हैं ।
कभी तेरे उतारे जूते मुझे बताते हैं मीलों चले चाँद
और सुनाते हैं ढेरों ऐसे ढब बेढब शहर
जो तुने जूते के पैतावे में छुपा दिये हैं ।
पता चलने नहीं देगा
पर
तु इस वक्त भी तारों से आसमान लाने के लिए जुटा होगा ...
- निवेदिता दिनकर
  08/01/2020

चित्र : एक अकेला थकेला चाँद 

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