गुरुवार, 13 सितंबर 2018

लघु प्रेम कविता ५




प्रेमिका
से
पत्नी,
पत्नी
से
माँ ...
बनी थी जब ...
और
तुम ...
वह करुण चेहरा
अबोध बालक पन
निरुपाय
असमय ...
हे स्थिति,
तुम मुझे ' शून्य ' कर गयीं
एक पूर्ण विराम ...
"समाधिस्थ" 
- निवेदिता दिनकर
१०/०९/२०१८
#लघुप्रेमकविता५


झुमकी की एक मोहक पेंटिंग 

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (15-09-2018) को "हिंदी पर अभिमान कीजिए" (चर्चा अंक-3095) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हिन्दी दिवस की शुभकामनाओं के साथ...।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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