बुधवार, 23 मई 2018

प्रश्न




पता है ,
न तो तुम में हमारे जैसे है अदब , न कायदा
न ही ज्ञान , न सलीका ,
न हुनर , न सभ्यता ,
कैसे हो इतने अलहदा ?
कहाँ से लाये मनुष्योचित अवस्था ?
शायद,
तुम मेरे प्रश्न का जवाब न दे पाओ
या
शायद
हम अपने प्रश्न का जवाब न सुन पाए ...
- निवेदिता दिनकर
  २२/०५/२०१८
सन्दर्भ : यह है मेरी बेटी 'बनी ', जो एक जर्मन शेफर्ड है | इतनी मासूम और प्यारी,
उसे  तो बिना वजह प्यार करने का मन करता है |  
कहने को श्वान , गुस्से पर गज़ब का कण्ट्रोल , घर पर नहीं रहूँ , तो खाना पीना छोड़ देती है | 
उसके प्रति यह सवाल , रचना के रूप में , असल में मुझे अपने से है | 

5 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २८ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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  2. वाह मूक अबोले से प्रश्न या स्वयं से ।
    सुंदर रचना।

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  3. इंसान अब मनुष्य कहाँ रहा जो मनुशियता की बात सुन सके .. ये ख़ुद से किया प्रश्न है जिसका जवाब नहीं किसी के पास .।।

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