आज मौसम का मन तो मसूरी मसूरी हो रहा है और मन का मौसम चुप।
कहीं कोई दास्ताँ बरस पड़ा होगा, शायद। तभी खलबली मच रही है।
अभी इंतेहानों और इंतज़ारी का मौसम है। यानि अप्रैल मई तक परीक्षाऐं खत्म होंगी और बीच में कोई तीज त्यौहार भी नहीं। तब तक हम जैसे ऐसे ही 'इंतज़ार' को सेलीब्रेट करते रहेंगे। बच्चें कभी पढाई तो कभी नौकरी से तारतम्यता के चलते घर फोन भी कहाँ कर पाते हैं। उनकी आवाज़ जिससे धडकती हमारी जिंदगी की हँसी, साँस, गुलज़ार छटपटा जाती है। परन्तु हम अपने दिल की बात कहाँ कह पाते है उनसे, है न ?
सच है, कि व्यस्त हम सब है कहीं न कहीं। झकझोरती हूँ अवगत कराने के लिए 'अपने' को "अपने" से।
इमोशंस को उठा कर डीप फ्रिज़ में रखना सीख लिया है मैंने।
- निवेदिता दिनकर
तस्वीर : मेरे सौजन्य से : गेहूँ की बालियाँ , कछपुरा , आगरा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-03-2017) को "ख़ार से दामन बचाना चाहिए" (चर्चा अंक-2915) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'