एक ऐसी भी ख्वाहिश है कि हर रात एक नये शहर में गुजरे।
हर शहर की एक अलग फ़िजा।
फ़िजाऐं बता देती है फितरतें।
देह लिए होती है और होती है उसमे एक उन्मादी गंध |
महसूस किया है मैंने |
सड़कों पर,
दरख्तों पर,
ईटों पत्थरों पर,
तिलस्मी कहानियों का ज़खीरा सोया हुआ है, एक आहट के इंतज़ार में।
आज ' रात ' चाँद तारों के साथ अलाव जलाकर कुछ गपशप करने की फिराक में है।
श श श ...
- निवेदिता दिनकर
18/01/2018
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