अपने को शीशे में देख कर शर्माना अच्छा लगता है |
कनखियों से उनका देखना अच्छा लगता है ||
गर अगर भूल भी जाओ हमें एक बार |
हमें तो तन्हा रहना अच्छा लगता है ||
चाँद तारें न भी निकले गर रात भर |
हमें अँधेरा चीरना अच्छा लगता है ||
ठिठुरती रात में अलाव जले या न जले |
हमें तो रफ्ता रफ्ता गलना अच्छा लगता है ||
तुम रूठ भी जाओ गर हमसे ऐ सनम |
लब तुम्हारे छूने का बहाना अच्छा लगता है ||
इस ज़िन्दगी से रुख्सत कब हो क्या पता |
तुम्हारे प्यार में फ़ना होना अच्छा लगता है ||
- निवेदिता दिनकर
०५/०१/२०१७
महफ़िल : मेरी तुम्हारी
बहुत प्यारी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (08-01-2018) को "बाहर हवा है खिड़कियों को पता रहता है" (चर्चा अंक-2842) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
बहुत खूबसूरत रचना है निवेदिता जी
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना..
बहुत ख़ूब निवेदिता जी
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