२०११ में लिखी थी, आप भी महक लें ...
खूब थी वह खूबसूरत याद ..........
बेमिसाल बेहिसाब बेकाबू
जाने अनजाने बस गयी
भीनी मंद मंद मीठी मीठी
सराबोर कर के आज ...........
जाने अनजाने बस गयी
भीनी मंद मंद मीठी मीठी
सराबोर कर के आज ...........
जैसे
धुएँ के छल्लों में
पहली कश ...
खूब थी वह खूबसूरत याद ..........
---" कुछ पल जो संजोये है...."
- निवेदिता दिनकर
०९/०४/२०१६
तस्वीर: उर्वशी के हाथों का जादू ...
वो खुबसूरत याद अब भुलाये भूलते नहीं ...
जवाब देंहटाएंअब तो यादों के पगडण्डी के सिवा कोई रास्ता नहीं |
मेरी पत्नी के देहावसान के बाद
हटाएंlikha thaa
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (11-04-2016) को
जवाब देंहटाएंMonday, April 11, 2016
"मयंक की पुस्तकों का विमोचन-खटीमा में हुआ राष्ट्रीय दोहाकारों का समागम और सम्मान" "चर्चा अंक 2309"
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपने लिखा...
जवाब देंहटाएंकुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 12/04/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 270 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।