हमेशा काम की बातें
या
मतलब की बातें
या
फिर जरूरी बातें
या
ऊँचे दर्जे की बातें ...
कभी बेमतलब की या बेबुनियाद या गैर जरूरी बातें क्यों नहीं?
मसलन
घर में कौन कौन है?
बेटी कितनी बड़ी हो गयी है?
स्कूल जाने लगी की नहीं?
बेटे को बिगाड़ना मत ...
उसकी चोट ठीक हो गयी की नहीं ...
रुकसाना कैसी है?
अब और बच्चें मत पैदा करना !!
अम्मी ने क्या खाना बनाया?
अब्बू की खाँसी कैसी है?
तम्बाकू खाना कब छोड़ रहे हो?
वगैरह वगैरह ...
आज कल यही बे सिर पैर की बातें कर रही हूँ
और
और
फिर जगह जगह इन आधी अधूरी बातों की पैबंद लगा खूब जी रही हूँ ...
बड़ा ही सुकून है, सचमुच ...
- निवेदिता दिनकर
१५/०३/२०१६
सन्दर्भ : राह चलते मजदूरों से बतियाते हुए
तस्वीर: देहरादून में कुछ बच्चें भिक्षुकों के साथ
अधूरी बातों को पैबंद लगा, खूब जी रही हूँ
जवाब देंहटाएंये शब्द सुहाने लगे :)
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17 - 03 - 2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2284 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
अच्छा लिखा रोजनमाचा
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