वह जब भी मेरे घर के सामने वाली सड़क से गुजरती है, अच्छा लगता है ।
वह जब भी मुस्कुराकर आँखों आँखों से कुछ कहकर निकल जाती है, अच्छा लगता है ।
वह जब भी रुक कर फिर आगे बढ़ जाती है, अच्छा लगता है।
एक दिन आख़िरकार मैंने उसे रोका, और अपनी एक शाल दिया, तो कहती है दीदी, आपने बहुत काम की चीज़ दी है, इस सर्द में खूब काम आयेगी।
ऐसी नज़र अंदाज़ करने वाली घटना या मामूली सी बात कब गहरा चोट कर जाये या फिर कब सबक सिखा जाये या फिर कब रूह से रूह मिला जाये, यह कोई नहीं बता सकता ॥
यह मेरी नायिका है, मेरी सब्ज़ी वाली ...
- निवेदिता दिनकर
15/12/2015
फोटो :" कुछ रौशन दिये" , मेरी नज़र से
स्नेह के फूल बिखराने हेतू । धन्यवाद
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