और कल जब तुमने कहा,
तुम बात करती हो,
जब
तुम लड़ती हो,
जब
तुम फ़ोन मिलाकर
कहती हो,
आना मत …
पता नहीं,
मुझे सुकून सा लगता है …
चल बुद्धू ,
यह क्या कोई बात हुई …
तुम ठिठोली कर रहे हो न ?
नहीं
नहीं …
बस
डरता हूँ तुम्हारी ख़ामोशी से …
तब से
दीवानी सी उड़ रही हूँ !!
- निवेदिता दिनकर
फोटो क्रेडिट्स : दिनकर सक्सेना, लोकेशन मंसूरी की मादकता भरी सांध्य
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (04-11-2015) को "कलम को बात कहने दो" (चर्चा अंक 2150) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'