आज तुम पास नहीं थे। लेकिन टेक्नोलॉजी की वजह से एक दूसरे से मुलाक़ात और बातचीत हो गई और इस प्रकार कब पच्चीस वे सालगिरह के नजदीक पहुँच गए …
यों तो कभी तुमने करवाचौथ का व्रत रखने के लिए भी जोर नहीं दिया मगर अपनी तसल्ली और अपने को आँकने के लिए कोशिश जरूर करती हूँ॥
बिन व्रत
तुम्हें पाया।
अब
व्रत कर
अपने को
पाने की
कोशिश में …
कितनी सगी,
कितनी जटिल …
कितनी उचित,
कितनी खुदगर्ज़ …
कितनी अभिमानी,
कितनी स्वार्थी …
कितनी अपनी,
कितनी अपनों की …
लगा कर
कितने जोड़,
कटौती …
गणित,
विज्ञानं,
अर्थशास्त्र …
बन भी पाई
कोई
आधी अधूरी अस्तित्व ?
थाह लेना जरूरी है॥
- निवेदिता दिनकर
११/१०/२०१४
फोटो क्रेडिट्स - उर्वशी दिनकर
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