बुधवार, 24 सितंबर 2014

कविता


फिसलती रेत सी,
घुमड़ती बादल सी …
कभी मायावी,
कभी भूखी …
कभी खामोश इंतज़ार,
कभी चुप्पी उजागार …
कभी तिल तिल दाह,
कभी चल चल राह…
दर्द की ओढ़नी ओढ़े
छिपती छिपाती …
तो कभी गर्म लावा
सी धौकती …

अब कितना हिसाब रखूँ
तुम्हारा !!

- निवेदिता दिनकर
  २४/०९/२०१४


नोट - उपरोक्त तस्वीर 'उर्वशी दिनकर' के कैमरें से। "मकड़ी के जाल में कैद सूखे पत्ते "   

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