कितना चाहू, जानू ना …
क्या चाहू, जानू ना …
जानू ना अँधेरा,
जानू ना सवेरा …
रस्म जानू ना,
बंधन जानू ना …
फ़ासला जानू ना,
उम्मीद जानू ना …
ठोकर जानू ना,
इशारा जानू ना,
जानू ना शक्ति ,
जानू ना मुक्ति …
जानू तो केवल इतना जानू ,
बितायी हुई घड़ियाँ,
बितायी हुई कड़िया …
बिताये हुए पल,
बिताये हुए कल …
बिताये हुए राज़,
बिताये हुए साज़ …
वह बीती हुई कहानी ,
वह आखरी निशानी …
वह बीती हुई कहानी ,
वह आखरी निशानी …
- निवेदिता दिनकर
यही तो प्रेम है ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और उत्कृष्ट प्रस्तुति, धन्यबाद .
जवाब देंहटाएंस्मृतियों का संसार सचमुच कितना समृद्ध होता है. अति सुन्दर.
जवाब देंहटाएंप्रेम सर्वोपरि है। कभी अपनी आवाज़ दूंगा इस कविता पर जरूर। अभी गला खराब है।
जवाब देंहटाएंआपने मेरी रचना पढ़ी और अपनी आवाज़ भी देना चाहते है, जानकर अच्छा लगा, राहुल
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