सुनहरा एहसास .....पल पल की ....धडकनों से गुजरती हुई स्याही तक का सफ़र ....
गुरुवार, 9 जनवरी 2014
फिलहाल
यूँ तो हर ओर अधूरापन, रिश्तों में सिलवटों का आवरण … टुकड़ो में पलता जीवन प्रभंजन … दौड़ता दौड़ाता निर्झर क्लांत अंतर्मन … बस , अब सृजन हो जाने दे, कोमल पत्तो को भीग जाने दे, फिलहाल जी लेने दे । 'फिलहाल' जी लेने दे ॥ - निवेदिता दिनकर
सुन्दर कृति.
जवाब देंहटाएंपधारने के लिए आभार, निहार जी ॥
हटाएंबहुत खूब !
जवाब देंहटाएं, बहुत अभिभूत हूँ, सुशील जी
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएं.यूँ ही स्नेह बनाए रखिएगा, ओंकार जी ॥
हटाएंबढ़िया रचना !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट आम आदमी !
नई पोस्ट लघु कथा
कुछ अपने कीमती वक़्त दिए, कालीपद जी
हटाएं....शुक्रिया ।
बढ़िया...
जवाब देंहटाएंआपके कमेंट के लिए धन्यवाद, रश्मि जी |
हटाएं.शुक्रिया ... राजीव जी
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मेरी रचना "फिलहाल "चुनने के लिए ... राजीव जी
जवाब देंहटाएंhttp://www.fcom.bu.edu.eg/
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