न जाने क्यों,
आज फिर,
गुलाबी ठण्ड ने,
कस्तूरी की मादकता ओढे ,
दोबारा दस्तक दिया है ...
कि ...
जैसे,
हर आहट में 'तुम' हो ।
हर आहट में 'तुम' हो ॥
वह बारिश की चंचल बूंदे ,
मुझे अनदेखा कर …
तुमसे पिघल जाना …
मेरा रूठना, तुम्हारा मनाना,
और …
मेरा रोम रोम का खिल जाना …
जैसे,
हर चाहत में 'तुम' हो ।
हर चाहत में 'तुम' हो ॥
वह सर्दी की गर्माहट,
हाथों का ठंडा पड़ना …
आँखों में शरारत
और
मंद मंद मुस्काना …
जैसे,
हर गुदगुदाहट में 'तुम' हो ।
हर गुदगुदाहट में 'तुम' हो ॥
वह तपती गर्मी की शीतलता,
लू के थपेड़े ,
संग चलकर ,
मंज़िल की ख्वाइश
और
बार बार यहीं ख्वाइश …
जैसे
हर सरसराहट में 'तुम' हो ।
हर सरसराहट में 'तुम' हो ॥
- निवेदिता दिनकर
११ /१२ /१३
' गुलाबी ठण्ड ..चाय की प्याली और तुम '...कुछ ऐसे ही एहसास से भर गयी ये रचना
जवाब देंहटाएंवाह ......
कुछ मेरे एहसासों स्थान देने के लिए आभार, Shikha
हटाएंभला हो ठंड का जो ऐसी ऊष्मायन सी रचना मिली-- सुंदर प्रस्तुति निवेदिता.. :)
जवाब देंहटाएंऊष्मायन सी फीडबैक देने के लिए शुक्रिया राजु ...
हटाएंबेहतरीन अभिवयक्ति
जवाब देंहटाएं… मैं बहुत प्रोत्साहित हूँ , संजय जी
हटाएंबहुत्त सुन्दर गुद्गुदानी वाली रचना १
जवाब देंहटाएंमकर संक्रान्ति की शुभकामनाएं !
नई पोस्ट हम तुम.....,पानी का बूंद !
नई पोस्ट बोलती तस्वीरें !
पोस्ट पर आने का आपका धन्यवाद, कालीपद बाबू
हटाएंहर कहीं तुम ही तुम तो नज़र आते हो ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब ख़्वाब की तरह ...
बहुत शुक्रिया आपका जो आपको मेरी ' यादें ' पसंद आई, दिगंबर जी |
हटाएंराहुल, तहे दिल से शुक्रिया , दोस्त
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंहिमकर श्याम
http://himkarshyam.blogspot.in/
अपार धन्यवाद, हिमकर श्याम जी
हटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंKailash Sharma ji, बहुत शुक्रिया आपका जो मेरी रचना पसंद आई ,
हटाएंबस तुम ही तुम हो तुम ही तुम हो और ये दिल........
जवाब देंहटाएंइतनी प्रेम भरी बातें....शुक्रिया आशा जी!
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