बुधवार, 11 दिसंबर 2013

यादों का पुलिंदा



न जाने क्यों,
आज फिर, 
गुलाबी ठण्ड ने,
कस्तूरी की मादकता ओढे ,
दोबारा दस्तक दिया है ...
कि ...
जैसे,
हर आहट में 'तुम' हो । 
हर आहट में 'तुम' हो ॥ 

वह बारिश की चंचल बूंदे ,
मुझे अनदेखा कर … 
तुमसे पिघल  जाना … 
मेरा रूठना, तुम्हारा मनाना, 
और … 
मेरा रोम रोम का खिल जाना  …   
जैसे,
हर चाहत में 'तुम' हो । 
हर चाहत में 'तुम' हो ॥  

वह सर्दी  की गर्माहट,  
हाथों का ठंडा पड़ना … 
आँखों में शरारत  
और 
मंद मंद मुस्काना … 
जैसे,
हर गुदगुदाहट में 'तुम' हो ।   
हर गुदगुदाहट में 'तुम' हो ॥ 

वह तपती गर्मी की शीतलता,
लू के थपेड़े ,
संग चलकर ,
मंज़िल की  ख्वाइश 
और 
बार बार यहीं ख्वाइश  … 
जैसे 
हर सरसराहट में 'तुम' हो । 
हर सरसराहट में 'तुम' हो ॥  

- निवेदिता दिनकर   
  ११ /१२ /१३  

17 टिप्‍पणियां:

  1. ' गुलाबी ठण्ड ..चाय की प्याली और तुम '...कुछ ऐसे ही एहसास से भर गयी ये रचना
    वाह ......

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    1. कुछ मेरे एहसासों स्थान देने के लिए आभार, Shikha

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  2. भला हो ठंड का जो ऐसी ऊष्मायन सी रचना मिली-- सुंदर प्रस्तुति निवेदिता.. :)

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    1. ऊष्मायन सी फीडबैक देने के लिए शुक्रिया राजु ...

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  3. उत्तर
    1. … मैं बहुत प्रोत्साहित हूँ , संजय जी

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  4. बहुत्त सुन्दर गुद्गुदानी वाली रचना १
    मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएं !
    नई पोस्ट हम तुम.....,पानी का बूंद !
    नई पोस्ट बोलती तस्वीरें !

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    1. पोस्ट पर आने का आपका धन्यवाद, कालीपद बाबू

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  5. हर कहीं तुम ही तुम तो नज़र आते हो ...
    लाजवाब ख़्वाब की तरह ...

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    1. बहुत शुक्रिया आपका जो आपको मेरी ' यादें ' पसंद आई, दिगंबर जी |

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  6. राहुल, तहे दिल से शुक्रिया , दोस्त

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  7. बहुत खूब..सुंदर रचना
    हिमकर श्याम
    http://himkarshyam.blogspot.in/

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  8. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...

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    1. Kailash Sharma ji, बहुत शुक्रिया आपका जो मेरी रचना पसंद आई ,

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  9. बस तुम ही तुम हो तुम ही तुम हो और ये दिल........

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    1. इतनी प्रेम भरी बातें....शुक्रिया आशा जी!

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