सोमवार, 29 जुलाई 2013

जैसे कोई किरदार

ज़ेहन में जुस्तजू
झीनी सी तृषा लिए …. 
कैसे कैसे नाजुक मोड़ 
कभी सावन भादों में सूखे रहना 
तो कभी बेचारा बेरंग फागुन 
ऊबड़ खाबड़ हो 
या बीजुरी सी जगमग, 
कब मैं समाती चली गई …
होके बेक़रार 
जैसे कहानी की कोई किरदार | 
जैसे कहानी की कोई किरदार ||  

अवहेलित हुई 
व्यथित हुई 
दे न सकी दलील सही ...
कतरा कतरा 
बावड़ी मेरी 
सकुचाती रही 
सिमटती रही 
कब मैं लहराती चली गई … 
होके बलिहार 
जैसे कहानी की कोई किरदार | 
जैसे कहानी की कोई किरदार ||

सुलग रही हैं तमन्नाऐ, 
पिघल रही धडकनों की चादर 
फिरकनी बन 
फिरती रही... 
कितने गिरह 
कितनी चुप्पी 
कब मैं ढाकती चली गई …   
डूबके बारम्बार 
जैसे कहानी की कोई किरदार | 
जैसे कहानी की कोई किरदार ||  

-  निवेदिता दिनकर 

14 टिप्‍पणियां:

  1. इस कहानी की किरदार को अभिवादन ....

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    1. शिखा, देरी के लिए क्षमा, तुम्हारा हार्दिक आभार |

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  2. नियति की लिखी कहानी के किरदार ही तो हैं हम सब...
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....

    अनु

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    1. अनु, ऐसे ही स्नेह बनाये रखना … दिल से शुक्रिया

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  3. वाह ,लाजवाब , ढेरो शुभकामनाये निवेदिता जी

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    1. Shorya, रचना आपको पसंद आई, जानकार बहुत प्रसन्नता हुई , धन्यवाद

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  4. हम ही जीते हैं इन सभी किरदारों में ...

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    1. सच कहा आपने, दिगम्बर जी| यूँ ही आते रहिएगा, जी शुक्रिया

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    1. Ana जी, आप पहली बार पोस्ट पर आई, बहुत अच्छा लगा, शुक्रिया| देरी के लिए क्षमा ...

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  6. उत्तर
    1. आपकी स्नेहमय बाते , मुझे बहुत भायी, आभार आपका, आशा जी ...

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  7. बहुत बढ़िया प्रस्तुति हार्दिक बधाई

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