ज़ेहन में जुस्तजू
झीनी सी तृषा लिए ….
कैसे कैसे नाजुक मोड़
कभी सावन भादों में सूखे रहना
तो कभी बेचारा बेरंग फागुन
ऊबड़ खाबड़ हो
या बीजुरी सी जगमग,
कब मैं समाती चली गई …
होके बेक़रार
जैसे कहानी की कोई किरदार |
जैसे कहानी की कोई किरदार ||
अवहेलित हुई
व्यथित हुई
दे न सकी दलील सही ...
कतरा कतरा
बावड़ी मेरी
सकुचाती रही
सिमटती रही
कब मैं लहराती चली गई …
होके बलिहार
जैसे कहानी की कोई किरदार |
जैसे कहानी की कोई किरदार ||
सुलग रही हैं तमन्नाऐ,
पिघल रही धडकनों की चादर
फिरकनी बन
फिरती रही...
कितने गिरह
कितनी चुप्पी
कब मैं ढाकती चली गई …
डूबके बारम्बार
जैसे कहानी की कोई किरदार |
जैसे कहानी की कोई किरदार ||
- निवेदिता दिनकर
इस कहानी की किरदार को अभिवादन ....
जवाब देंहटाएंशिखा, देरी के लिए क्षमा, तुम्हारा हार्दिक आभार |
हटाएंनियति की लिखी कहानी के किरदार ही तो हैं हम सब...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....
अनु
अनु, ऐसे ही स्नेह बनाये रखना … दिल से शुक्रिया
हटाएंवाह ,लाजवाब , ढेरो शुभकामनाये निवेदिता जी
जवाब देंहटाएंShorya, रचना आपको पसंद आई, जानकार बहुत प्रसन्नता हुई , धन्यवाद
हटाएंहम ही जीते हैं इन सभी किरदारों में ...
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने, दिगम्बर जी| यूँ ही आते रहिएगा, जी शुक्रिया
हटाएंatyant sundar shabdon se sajaya hai apne.....wah
जवाब देंहटाएंAna जी, आप पहली बार पोस्ट पर आई, बहुत अच्छा लगा, शुक्रिया| देरी के लिए क्षमा ...
हटाएंसुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंआपकी स्नेहमय बाते , मुझे बहुत भायी, आभार आपका, आशा जी ...
हटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंसंजय जी, दिल से शुक्रिया
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