इस हसीन रात की बात ही कुछ और,
टिपिर टिपिर बूंदों की मस्ती ,
धीरे धीरे पत्तियों से ढलकना
ज़मीन पर आते आते बिछ जाना ....
जाने कितनी मखमली यादों का ताजा होना,
जैसे कोई प्रेयसी अपने ही धुन में ......
राज़ समेटे,
लुकाछिपी का दौर चलाये ।
गभीर नितान्त है श्याम
खोई खोई सी दास्ताँ .....
न जाओ देकर वास्ता ,
सुन पाऊँ धड़कन अपनी
फिर से गरम साँसों का एक होना
पनपने की खुशहाली इतनी
जाने कितनी सिहरनों भरी आगोश का ....
खामोश छिटकना ।
जैसे कोई प्रेयसी चटक रंग में ......
अहसास लिपटे
रूह तक फुहारें बरसाए ।
- निवेदिता दिनकर
अहा....
जवाब देंहटाएंसुन्दर..भीगी यादों सी नज़्म.
अनु
नज़्म पसंद आने के लिए शुक्रिया,
हटाएंनिवेदिता
वाह बहुत बढिया..सुन्दर प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंadbhut prastuti ..dost maza aagaya
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