बुधवार, 17 जुलाई 2019

जाल



एंगेल बना,
हैंगिंग गमले में टंगा चाँद ...
होठों से गुजरते,
दार्जिलिंग टी धीरे धीरे 
ढलान पर उतर रही थी ...
तुलसी ने मिटटी पर पूरा अधिपत्य जमा रखा था ...
जाल बुन दिया गया है
पर
वह नीली कांजीवरम साड़ी क्यों नहीं मिल रही ?

- निवेदिता दिनकर 

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (19-07-2019) को "....दूषित परिवेश" (चर्चा अंक- 3401) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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