शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

नशा



बचपन में बादलों को दिखाकर
माँ बोलतीं,
'ठाकुर, ओखाने थाके '
यानि ठाकुर जी वहाँ रहते हैं ।
हवाई जहाज में
बैठकर,
ठाकुर जी कई बार दिखें ...
बादलों की खूबसूरती
और
उनका एक दूसरे के पीछे
दौड़ने भागने छिपने
में ...
लिखते सोचते
तुम्हारे
देह से लिपटे
हुए
पा रही हूँ ।
आज
नशा
करने का
बहुत मन है ...
आओं न, कुछ घूंट भर लें...
श श श
चुपके से
इन बादलों की ...
- निवेदिता दिनकर
04/07/2019

तस्वीर : हवाई जहाज़ के भीतर से , अहमदाबाद यात्रा 

9 टिप्‍पणियां:

  1. वाह। बहुत सुंदर अहसास।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 10 जुलाई 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  3. बेहद रुमानी.. खूबसूरत एहसास से गूँथी रचना👌

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  4. आप सब का अशेष धन्यवाद ...
    नतमस्तक हूँ , प्रिय गुणीजनों

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