बचपन में बादलों को दिखाकर
माँ बोलतीं,
'ठाकुर, ओखाने थाके '
यानि ठाकुर जी वहाँ रहते हैं ।
माँ बोलतीं,
'ठाकुर, ओखाने थाके '
यानि ठाकुर जी वहाँ रहते हैं ।
हवाई जहाज में
बैठकर,
ठाकुर जी कई बार दिखें ...
बैठकर,
ठाकुर जी कई बार दिखें ...
बादलों की खूबसूरती
और
उनका एक दूसरे के पीछे
दौड़ने भागने छिपने
में ...
और
उनका एक दूसरे के पीछे
दौड़ने भागने छिपने
में ...
लिखते सोचते
तुम्हारे
देह से लिपटे
हुए
पा रही हूँ ।
तुम्हारे
देह से लिपटे
हुए
पा रही हूँ ।
आज
नशा
करने का
बहुत मन है ...
नशा
करने का
बहुत मन है ...
आओं न, कुछ घूंट भर लें...
श श श
चुपके से
श श श
चुपके से
इन बादलों की ...
- निवेदिता दिनकर
04/07/2019
04/07/2019
तस्वीर : हवाई जहाज़ के भीतर से , अहमदाबाद यात्रा
वाह!!बहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंअद्भुत / अप्रतिम।
जवाब देंहटाएंवाह। बहुत सुंदर अहसास।
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 10 जुलाई 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
Thanks Pammi Singh Ji...
हटाएंबेहद रुमानी.. खूबसूरत एहसास से गूँथी रचना👌
जवाब देंहटाएंबेहद लाजवाब...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
आप सब का अशेष धन्यवाद ...
जवाब देंहटाएंनतमस्तक हूँ , प्रिय गुणीजनों
बहुत सुंदर रचना
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