इस बार थार से लौटने पर,
'थार' चला आया साथ घर ...
बालू के टिब्बें, ऊंट, भेड़, बकरी,
कोई भी नहीं रहा बाकी ...
वह सूर्यास्त का सुनहरा दृश्य,
बलिहारी जाऊँ ...
पीछे पीछे वह जनाब भी घर तक |
कीकर, टींट,फोगड़ा, खेजड़ी, रोहिड़ा
के
वृक्ष
तो दौड़कर
मेरे से पहले ही जम गये थे |
यह एक जटिल परिघटना है |
अलादीन के चिराग का जिन्न
फिर प्रकट हुआ है ...
माँ के गोद में सर रखकर सुनती
'पारस्य रजनी'
वाली लड़की ...
श श श ..
... बस, अभी अभी सोयी है।
- निवेदिता दिनकर
तस्वीर : अप्रतिम लालिमा, थार मरुस्थल, जैसलमेर
मेरे मोबाइल कैमरे के सौजन्य से
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (03-10-2018) को "नहीं राम का राज" (चर्चा अंक-3113) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
सुन्दर रचना
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