शनिवार, 17 जून 2017

कवितायें








एक से बढ़कर एक 
कवितायें 
नायाब, बेमिसाल, असाधारण  ...   

प्रेम से भरी हुई 
ज़िन्दगी से लबरेज़ 
शहद में डूबी 
शहनाई को मात करती नवेली धुन जिसकी   
चिड़ियों की मासूम कलरव करती 
ग़ज़ल नुमा 
निष्कलंक
संपन्न

किसको पढ़े 
किसकी आरती उतारें 
प्रशांत महासागर से भी गहरें 
रुई मलमल से थोड़ी ज्यादा मुलायम 
आह जैसी चाह  ...  

वातानुकूलित कमरों से निकली 
कवितायें 
शायद ऐसी ही होती है !!

- निवेदिता  दिनकर
  १७/०६/२०१७ 


तस्वीर : तपती धूप तकती पेट 

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-06-2017) को
    "पिता जैसा कोई नहीं" (चर्चा अंक-2647)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. वाह
    कविता के भीतर का सच यही है
    प्रभावी कविता

    बधाई

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  3. कविता की छपास बढ़ती जा रही है ...
    अच्छा व्यंग है

    जवाब देंहटाएं