कुछ बातों / खबरों से मैंने अपने अंदर अवसाद को उतरते महसूस किया है | वह खबर, हादसा , घटना कभी कभी मेरे अंदर इतना लाचारी भर देती है, कि मुझे अपने आप से ही कष्ट होने लगता है | जरूरी नहीं, वह घटना मेरे साथ या मेरे अपनों के साथ घटी हो पर बस बेबस कर जाती है |
ऐसे में गीतों या फिल्मों या अपनी पालतू डॉगी या कुछ और डॉगी जो सड़क पर घुमते है और लगभग पालतू नुमा से हो गए है से बड़ा सहारा मिलता है |
कभी तो हवा में ही कुछ भाव कच्चा पक्का उकेर देती हूँ और सुकून पा लेती हूँ | अब हर वक़्त कागज़ कलम तक पहुँचना कहाँ हो पाता है |
माँ बताती है , बचपन में राह चलते कुत्ते के बच्चे , बकरी के बच्चें, चिड़ियों के बच्चे घर में उठा लाती थी और माँ से ज़िद करती थी कि इनको पाल लो |
आसपास के घरों में अब कहीं मेरी बचपन वाली रज़िया आंटी नहीं दिखती , न ही पाठक आंटी , न ही गोयल आंटी न ही कुलवंत आंटी बल्कि आस पास जाति और मज़हब और सोच दिखती है या दिखती है फॉरेन रिटर्न्ड या मर्सिडीज़/ बी एम् डब्लू वाली कोठी या ए सी/ विदेशी / स्वदेशी के मद से प्रदूषित होता वातावरण |
ओह , कब तक ... चलो एक बार फिर से ... ~ ~ ~
गुफा, नदी , झील , प्रकृति और प्रकृति ...
पाषाण युग कैसा रहेगा ??
बस, मुठ्ठी भर ...
- निवेदिता दिनकर
२५/०७/२०१७
फोटो : एक मुठ्ठी शाम, लोकेशन आगरा , ताज महल के पास
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (26-07-2017) को पसारे हाथ जाता वो नहीं सुख-शान्ति पाया है; चर्चामंच 2678 पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'