ज़िद्दी ज़िद्दी ज़िद्दी
हाँ हूँ
यार, पगला जाती हूँ ...
आजकल
बेकाबू टाइप हो जाती हूँ।
कभी
बहुत रोने का मन करता है |
अंदर सिसक रही हो जैसे ...
कच्चे घड़े को वापिस
मिट्टी बनना हो वैसे ...
और
अब
चीख चीखकर रोना चाहती है।
रोने दो न ...
मिट्टी बनने दो न ...
- निवेदिता दिनकर
17/12/2016
तस्वीर : उर्वशी के आँखों देखी, लोकेशन : दिल्ली हाट
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (19-12-2016) को "तुम्हारी याद स्थगित है इन दिनों" (चर्चा अंक-2561) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'