सुन बिटिया झुमकी ,
कुछ महीनों पहले तुझे सोचते हुए लिख डाला था । आज मैं पोस्ट कर रही हूँ ।
तू अपने स्कूल की धर्मशाला ट्रिप में खूब खूब मज़े करना। फोटोग्राफी, हाईकिंग, कैंपिंग , गपशप, कूदना, फाँदना सब कुछ पर अपना ख्याल रखना । पापा और मैं इंतज़ार कर रहे है ।
कैसे भूल सकती हूँ,
उन दो पैरेलल लाल लकीरों को …
जब पहली बार देखा ' तुझे '
मैं मंद मंद बहती पवन बन गई
लहराने लगी
झूमने लगी
गाने लगी
सुन री पवन, पवन पुरवैया …
फिर बिंदु
से होकर
आकार …
एक जीवंतता
एक यथार्थ
एक धड़कन
एक तैयारी
एक मिसाल
का आकार
अब साकार होने लगा ...
मैं
प्यासी पपीहरा सी व्याकुल
अपने आगोश में लेने को आकुल
और फिर
एक दुपहरिया,
एक कुहकती चिरैया
न लगे किसीकी नजरिया
बदलने आयी जो नजरिया
बढ़ाने, जीवन का पहिया …
सुन री पवन, पवन पुरवैया …
कैसे भूल सकती हूँ …
- निवेदिता दिनकर
27/09/2015
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-09-2015) को "डिजिटल इंडिया की दीवानगी मुबारक" (चर्चा अंक-2113) (चर्चा अंक-2109) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'