शुक्रवार, 19 जून 2015

पद्मावती जयदेव


आज बहुत दिनों बाद माँ के श्रीमुख ने एक खूबसूरत रोचक कहानी सुनाई  
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जब श्री कृष्ण भक्त संस्कृत महाकवि जयदेव ने सोचा कि उन्हें कृष्ण के लिए कुछ लिखना चाहिए मगर वर्णन गीत द्वारा होना चाहिए। तब उनकी पत्नी पद्मावती कहती है कि ठीक है, आप बिना  किसी बिघ्न बाधा के कार्य शुरू कीजिये और जयदेव एक कमरे में अविराम निराहार अनिद्रा में महीनो गुजार देते है। 
 पद्मावती को उत्सुकता हुई तो एक दिन पद्मावती जयदेव से  पूछती है, स्वामी, इतने महीनें गुजर गए, क्या आपकी रचना अभी तक पूरी नहीं हुई ? 
जयदेव बोलते है कि पता नहीं क्यों , मैं किसी भी प्रकार से अपनी रचना के अंत तक नहीं पहुँच पा रहा  हूँ ?  तत्पश्चात पद्मावती कहती है ठीक है , आप नहा धो कर थोड़ा विश्राम कर लीजिये, तदुपरांत लिखना प्रारम्भ कीजिये, आप अंत तक पहुँच जायेंगे। जयदेव ऐसा ही करते है ।
 अब जब जयदेव वापिस अपने कमरे में काव्य पूरी करने पहुँचते है तो अपनी लिखने की किताब को बंद पाते है। अचंभित अपनी पत्नी पद्मावती से पूछते है कि उनके पीछे क्या कोई आया था ? पद्मावती कहती है कोई भी तो नहीं आया सिवाय उनके।  
आगे पद्मावती कहती है कि आप ही तो आये थे यह कहकर कि, उन्हें अपने काव्य का अंत मिल  गया है । 
यह सुनकर जयदेव दौड़ कर अपनी लिखने की किताब का आखरी पन्ना पलटते है तो लिखा पाते है     "देहि पद पल्लव मुदा रम" यानि श्री राधा के चरण कमल पर श्री कृष्णा सर झुकाते है । 
अरे ! तो क्या स्वयं श्री कृष्ण आये थे  …  
इस प्रकार जयदेव की महान  कृति ‘गीत गोविन्द’ की अनुपम साहित्य अभिव्यक्ति हुई । 
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आज माँ से 'पद्मावती जयदेव' की यह कथा सुनकर आपके समक्ष न लिखकर रहा न गया …  

- निवेदिता दिनकर 
  १९/०६/१५ 
फोटो : Radha and Krishna in Discussion (An illustration from Gita Govinda) 

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (21-06-2015) को "योगसाधना-तन, मन, आत्मा का शोधन" {चर्चा - 2013} पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    अन्तर्राष्ट्रीय योगदिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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