बुधवार, 24 जून 2015

मायका

   

मायका यानि प्यारे एहसासों का प्रशांत महासागर। मायका यानि हिमालय से भी ऊँचा बेटी का अभिमान। 
गुरुर। कुछ दिनों में ही तरावट आने लगती है। खट्टी मीठी स्मृतियाँ और भावुक कोनेँ । 

रजनीगंधा सी महकती माँ और मेरे में रची बसी उनका हर कोण। 

आजकल सुबह से दोपहर से शाम से रात, कोशिश, पलो को न जाने देना और तबियत से मायके का रग रग पान करना जिससे दोबारा वापिस आने तक मेरी आत्मा बेला चम्पा सी प्रफुल्लित और तरोताज़ा रहे ...
साथ मौसम बखूब दे रहा है, बूँदो से हरी हरी पत्तियों में जान आ गई है और ह्रदय में प्रीति की अंगड़ाई की कोमल कसक के तो क्या कहने !!   
- निवेदिता दिनकर 
   24/06/2015  

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (26-06-2015) को "यही छटा है जीवन की...पहली बरसात में" {चर्चा अंक - 2018} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. मायका और माँ का प्यार ....क्या कहने ..

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