तुम्हारी मीठी मीठी बातों में
इतना रस घुला हुआ,
मानों, बन जाती मैं मिट्टी
सौंधी तरावट सी …
तुम्हारी बहकी बहकी बातों में
इतना जादू भरा हुआ,
और बन जाती मैं छटपटी
लीन विक्षिप्ता सी …
तुम्हारी बाँकी तिरछी बातों में
इतना तंज भरा हुआ
फिर बन जाती मैं परिधि
आकाशगंगा आकृति सी …
- निवेदिता दिनकर
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11.07.2014) को "कन्या-भ्रूण हत्या " (चर्चा अंक-1671)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए तहे दिल से शुक्रगुज़ार …आदरणीय राजेंद्र कुमार जी
हटाएंगागर में सागर, कविता कहु की लघु कविता थोड़ा सा भ्रम है...बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंअभिषेक जी, शुक्रिया आपका मार्ग दर्शन हेतु ...
हटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंआप के स्नेह से मन प्रफुल्लित हो गया धन्यवाद, Amrita Tanmay जी
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