शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

अकेली चली

अकेली चली 
अकेली चली 
चंचल मन
अनजान पथ
तमाम राही
कांटे शत शत
लिए स्वप्नों की डली
अकेली चली
अकेली चली

तीखे मिजाज़
अंदाज़ भरपूर
कोशिश अपार
लम्हा बदस्तूर
लिए हौसलों की फली
अकेली चली
अकेली चली

शाम ऐ झोका
तेज़ रूप
कदम ऐ चाल
मत रुक
लिए सुकूनो की कली
अकेली चली
अकेली ही चली ....



- निवेदिता दिनकर

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