प्रेम गीतों में समुद्र किनारें याद आने लगते हैं ...
डूबता सूरज ...हाथों में हाथ डाले वह सत्तर वर्षीय दंपत्ति
जो चुपचाप समुद्र के हिलोरों और गर्जनों को सुन रहा है ...
नवंबर की हलकी गुदगदी सर्दी
और केतली से निकलता भाप ...
वह चाय वाला क्या सोच रहा होगा
चाय छानते वक़्त ... ?
सोचते सोचते पहुँच जाती हूँ
दबे पॉंव उसके घर
जहाँ उसकी पत्नी चुपचाप चौका बुहार रही है ...
क्या यह प्रेमगीत माना जा सकता है ... !!
आर्किड के पौध में दम भरने के लिए
तेज़ सिंह माली
केले के छिलके, सूखे पत्ते , कोयले का बुरादा मिलाकर
मिटटी के गमले को भरते हुए
को देखना
प्रेम की चरम अवस्था भी हो सकती है,
शायद ...
तैंतीस साल पहले खो चुके प्रियतम को
उसके जन्मदिन पर
उसकी पसंदीदा कविता कुब्ला ख़ान
को पढ़ कर खिलखिला उठना
को
प्रेम का ब्रह्माण्ड ... !!
मेरे यात्रा में हौले से पड़ते
यह मुलायम दाने
मुझे ज़रूर
थोड़े और दिन बचाकर रखेंगे ...
- निवेदिता दिनकर
१०/११/२०२०
कुब्ला ख़ान Kubla Khan: A poem By Samuel Taylor Coleridge
तस्वीर सौंदर्य : मेरे बागान से 'पाम'
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ नवंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंधनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।