कुछ दोपहरी कविताएँ... रात भेदती हुईं ...
कुछ सपाट सन्नाटें ... कपाट चीरती हुईं ...
बेहद कच्ची है , साहिब ...
ढह सकतीं है |
- निवेदिता दिनकर
- निवेदिता दिनकर
१४/०६/२०१८
सन्दर्भ : यह तस्वीरें बेहद नाज़ुक है | इनको संभाल के पढ़ियेगा | आगरा के कछपुरा गाँव के पास टूरिज्म का उत्थान के लिए कंस्ट्रक्शन में हाथ बंटाती यह सखियाँ , इनका अतुल्य परिचय इतिहास क्या सहेज पायेगा ...
#साइटडायरीज
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-06-2018) को "मौमिन के घर ईद" (चर्चा अंक-3003) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
इनका काम ही इनका परिचय है
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