शनिवार, 16 अगस्त 2014

धड़कन



रातों का झुरमुठ, 
गहरी भूरी धुंध,
चलती चली
मेरी 
'धड़कन' … 
घाव हरे, 
छोड़ दायरे  … 
तार कंटीले,
पाॅव मटमैले  … 
जिद्दी प्यास 
खोकर होशोहवाश …  

जस तस  
खींची एक 
ठंडी सांस 
और  
पहुंची 
इस बार 

देखने
करारे 
नए सपने  … 
करारे 
नए सपने  …  

- निवेदिता दिनकर  

2 टिप्‍पणियां:

  1. निवेदिता –

    चाहे हो पैरो में छाले
    आँखों में सपने डोले !!

    - सकारात्मक

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  2. सपने सुहाने सपने .......... सुन्दर सपने !!

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