सुनहले रौशनी सी,
चमकीली हंसी …
आकुल मन,
उन्मुक्त ख़ुशी,
उष्णता भरी,
गुलाब की ….
तुम्हारे प्रेम में ऐसो पगी,
रत्न जड़ी हीरा सी …
दमकती काया,
कोई तराना …
थाह नहीं,
मान खज़ाना,
ऐश्वर्य शाली,
हर डाली …
तुम्हारे प्रेम में ऐसो पगी,
अमृत जड़ी शीरा सी …
सुध बुध खोकर,
अपनी गंध …
ठगी ठगी सी,
तापसी बन,
नव पल्लव,
करू कलरव ….
तुम्हारे प्रेम में ऐसो पगी,
आह्लाद जड़ी मीरा सी …
तुम्हारे प्रेम में ऐसो पगी
आह्लाद जड़ी मीरा सी …
- निवेदिता दिनकर
चमकीली हंसी …
आकुल मन,
उन्मुक्त ख़ुशी,
उष्णता भरी,
गुलाब की ….
तुम्हारे प्रेम में ऐसो पगी,
रत्न जड़ी हीरा सी …
दमकती काया,
कोई तराना …
थाह नहीं,
मान खज़ाना,
ऐश्वर्य शाली,
हर डाली …
तुम्हारे प्रेम में ऐसो पगी,
अमृत जड़ी शीरा सी …
सुध बुध खोकर,
अपनी गंध …
ठगी ठगी सी,
तापसी बन,
नव पल्लव,
करू कलरव ….
तुम्हारे प्रेम में ऐसो पगी,
आह्लाद जड़ी मीरा सी …
तुम्हारे प्रेम में ऐसो पगी
आह्लाद जड़ी मीरा सी …
- निवेदिता दिनकर
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया आपका, जी देरी के लिए माफ़ी |
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