सोमवार, 4 मार्च 2019

देश प्रेमी




ज़ोर से कीं ई ई की आवाज़।
और फिर एक तेज़ कुछ टकराने की। भागते हुए गेट की तरफ जाती हूँ । गेट खोलकर सड़क की तरफ नज़र दौड़ाती हूँ कि देखती हूँ थोड़ी दूर पर कोई एक्सीडेंट हुआ है। मैं दौड़कर पहुँचती हूँ , तब तक करीब कुछ और लोग भी पहुँच जाते हैं। दो लोग, करीबन साठ पैंसठ की उम्र के , सड़क पर गिरे हुए हैं और तर तर खून से सने हुए। सामने एक स्कूटर लुढ़का पड़ा है और पास में एक मोबाइक भी औंधी पड़ी दिख रही है। एक लड़का भी सामने बाउंड्री वाल के सहारे अपने पैर को मल रहा है।
यानि स्कूटर मोबाइक में ज़बरदस्त भिड़ंत।
मैं, उनमे से एक जमीन पर गिरे आदमी को उठाने के लिए एक साइड से पकड़ती हूँ और ... लेकिन वह सज्जन घुटने में ज्यादा चोट लगने से उठ नहीं पाते।
मजेदार बात दूसरी तरफ से उन सज्जन को उठाने के लिए कोई हाथ भी नहीं आता।
मैं देखती हूँ ,भीड़ और बढ़ गई है पर सब हाथ पीछे करें , जैसे कोई शूटिंग चल रही हो , और यह सब मज़े देखने आयें हैं। मैं इशारा करती हूँ , वहाँ खड़े कुछ लड़कों को , मगर वे इधर उधर देखने लगते हैं ।
नालायक भीड़ से एक बुजुर्ग आगे बढ़ते हैं , तो मैं उनको बोलती हूँ , कि आप रहने दीजिये। वहां मेरा भी एक कर्मचारी खड़ा दिखता है, मैं उसे नाम लेकर बुलाती हूँ सपोर्ट के लिए। खैर, फिर कुछ लोग बमुश्किल आते है , और मैं घर से दो कुर्सियाँ मंगवाकर , उनको एक पेड़ के नीचे बैठाती हूँ।
आग्रह करती हूँ उन दो सज्जन से , कि सामने ही घर है , चलिये ... पर वे कहते हैं , फ़ोन कर दिया है , और वह लोग आ रहे हैं।
थोड़ी देर में उनकी कार आती है , और वे चले जाते हैं।
अब देखिये , सड़क पर पड़े लहूलुहानों को तो उठाने के लिए कोई
देश प्रेमी आगे बढ़ता नहीं , और मारों, पीटों, यह ब्लॉक , वह युद्ध, फलाना स्ट्राइक ... जैसी शौर्य गाथायें ... हम खूब कर बैठतें हैं।
शर्म करों ...
जग जाओ , कल तुम कहीं गिरे पड़े होगे , ऐसे ही सब हाथ छुपाते मिलेंगें।
आगे , तुम जानों , देश प्रेमियों ...

- निवेदिता दिनकर 

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (06-03-2019) को "आँगन को खुशबू से महकाया है" (चर्चा अंक-3266) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आजकल भीड़ में उपस्थित लोग संवेदनहीन होते जा रहे हैं।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
    iwillrocknow.com

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  3. आवश्यक सूचना :

    सभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html

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