मंगलवार, 25 अप्रैल 2023

कादंबरी ...!!!

 कादंबरी ...!!!

''आज तेईस अप्रैल है।
दो दिन बीत चुके हैं , तुम्हें गये हुए।
सोच भी नहीं पा रहा हूँ, कि यथार्थ में ऐसा भी कुछ हुआ है। शरीर ढीला पड़ा हुआ है। अपने कमरे में बैठा हुआ हूँ, उसी कुर्सी पर। जब तुम छुप छुप कर पीछें खड़े होकर मुझे लिखा हुआ देखा करती थीं। अचानक तुम्हारे ख़ुश्बू से कमरा फिर भर गया है।
तुम्हारा स्पर्श मेरे पीठ से होते हुए मेरे गर्दन को जकड रहा है और मुझे यह जकड़न ... आह, मैं बैचैन हो रहा हूँ , नोतून बोउ ठान ''
'' मैं एक घोर में जी रहा हूँ''
''अपने आप से विद्रोह कर रहा हूँ कि, कि तुम चुपके से आकर मेरे कविता लिखे कागज़ो पर आड़े तिरछे लकीर खींच दोगी और मैं ... ''
कुछ ऐसा ही सोचा होगा , रवींद्रनाथ ने भी , कादंबरी की मृत्यु के बाद।
कादंबरी देवी इक्कीस अप्रैल १८८४ को चली गयीं थीं हमेशा हमेशा के लिए। रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्रेरणा के साथ वे खुद रचनात्मक भी थीं।
मुझे कादंबरी देवी कब से मुग्ध करने लगीं, नहीं मालूम। रवीन्द्रनाथ टैगोर की लगभग हर कृति में वहीं तल्लीनता से बैठी मिलती है।
नमन कादंबरी ...
अनुलेख: कादंबरी को गाढे महसूसते हुए बेमौसम गाढ़े गुलाबी डेहलिया, हाॅलीहाक्स, कागज फूल (वूगनवेलिया) इस अप्रेल में, जब मौसम इन फूलों की इजाजत नहीं देता ...
पर मौसम में भी मौजूद हो मन की तड़प, कसक और कसकर आलिंगनबद्ध करने की झक्...!!!

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सोमवार, 10 अप्रैल 2023

हॉलीहॉक महसूस करना एक समाधि में प्रवेश करने जैसा है ...









हॉलीहॉक महसूस करना एक समाधि में प्रवेश करने जैसा है ...

मैं जनवरी से इस फूल के विशेष रूप से अपने छत के बगीचे में बढ़ने का इंतजार करती हूं और गिनती करती हूं ... एक दो तीन ... दिन फिर सप्ताह फिर महीने और अंत में उन्हें खिलते देखने के लिए ... इंच दर इंच फुट दर फुट...
अनंत खिलते देखने के लिए...
यही चरम है!
यही परमानंद है !!
यही असाधारण है!!!
यही असाधारण प्रेम लीला है !!!!
Feeling Hollyhocks is like entering into a trance ...
I wait for this flower to grow specially in my terrace garden from January and count ... one two three ...days then weeks then months & finally to see them blossom ... inch by inch foot by foot ...
to watch the eternal bloom ...
This is Zenith!
This is Ecstasy!!
This is Paranormal!!!
This is Paranormal Romance!!!!
07/04/2023

गुरुवार, 6 अप्रैल 2023

'' मात्र मात्राओं का खेल है '' प्रतिष्ठित कवयित्री अनीता निहलानी जी की समीक्षा





 ‘’कई बार मैंने मृत्यु को पास बिठाकर ज़िंदगी की सैर की है’’ - निवेदिता दिनकर

जीवन और मृत्यु के मर्म को जानने और गहन चिंतन और मनन के बाद उसे अपनी कविताओं में पिरोने का प्रयत्न करने वाली निवेदिता दिनकर एक प्रतिभावान कवयित्री हैं। इसका प्रमाण है उनका नया कविता संग्रह - ‘मात्र मात्राओं का खेल है’ जिसमें लगभग पचास कविताएँ हैं। पुस्तक का मुखपृष्ठ और कलेवर आकर्षक है तथा छपाई सुंदर है। सबसे पहले उन्हें तथा उनकी सुपुत्री को इसके लिए बधाई !
अमेजन से मँगवायी यह पुस्तक मुझे कल ही प्राप्त हुई, जैसे-जैसे कवितायें पढ़ रही हूँ, इनके बारे में कुछ लिखने की प्रेरणा सहज ही जग रही है। जीवन के विभिन्न रंगों की छटा बिखेरती ये कविताएँ कभी सुकून से भर देती हैं तो कभी कुछ सोचने पर विवश कर देती हैं।
कुछ कविताओं में बचपन बार-बार झलक आता है। दादू-दादी, नाना-नानी से सुनी कहानियाँ और झिझकते हुए पुत्री का पिता को कहना कि माँ से ज़्यादा प्रेम करने पर भी उन्हें कभी जताया नहीं, दिल को छू जाता है। बंगाल के आंचलिक जनजीवन का चित्रण करती कुछ बहुत ही सुंदर कविताएँ हैं, जैसे - बंगाल का जन जीवन और आलू झींगे पोस्ते
कई कविताएँ स्त्री विमर्श की पड़ताल करती प्रतीत होती हैं। नारियों पर हो रहे अत्याचारों को मात्र कुछ ही शब्दों में व्यक्त कर कवयित्री पाठक के मानस को झकझोर देती है । संग्रह की पहली कविता विषय रहित स्त्री विमर्श की एक सशक्त रचना है, तीन औरतें, आखेट को भी इस श्रेणी में रखा जा सकता है। कुरीतियों, अन्याय और अत्याचार के ख़िलाफ़ उठती उनकी कलम लिंचिंग और बलात्कार जैसे नासूर तथा धर्म के नाम पर हो रही हिंसा के प्रति जन मानस को सचेत करती लगती है। एक सशक्त कविता पुरुष का पौरुष में पुरुषों के प्रति होती नाइंसाफ़ी की बात भी रखी गयी है।
समाज में राजनीति की बढ़ती दख़लअंदाजी पर भी उनकी पैनी नज़र पड़ी है। इल्ज़ाम, पत्रकारिता शीर्षक की कविताओं में इसे देखा जा सकता है। ग़रीबी और अशिक्षा का दंश झेलते बच्चे, कोरोना काल में महानगरों से पैदल लौटते मज़दूरों की व्यथा कथा को भी अभिव्यक्ति का विषय बनाया गया है।
रिश्तों की ऊहापोह और एकतरफ़ा प्रेम की नशीली मदहोशी भी कविताओं का विषय बनी है । किस्से छलते हैं, पैटर्न, महिसा अमिनी, अंजाम और ख़ारिज इसका उदाहरण हैं। बैंगनी आसमान की यह पंक्ति छू जाती है - दर्द से बचने के लिए माँ के आँचल को उँगली में मरोड़कर छोड़ना ही एक मात्र उपाय है। अब कुर्सी में कविता में एक बहू के जज़्बातों को बखूबी संजोया गया है जो ससुर की मृत्यु के बाद उनकी कमी महसूस करती है। कुछ कविताएँ अपने भीतर एक से अधिक कहानियाँ समेटे हैं। शिमला ! कई गुलाबों का मौसम ऐसी ही कविता है। कहा जा सकता है कि जीवन के हर रंग को यहाँ समेटने का उपक्रम सहज ही दिखाई देता है। इनके अलावा भी अनेक ऐसी कविताएँ हैं जो पाठक के हृदय को किसी न किसी रूप में आंदोलित करती हैं; तथा अपने आस-पास हो रही घटनाओं और दृश्यों के प्रति एक विस्मय और कौतूहल का भाव जगाती हैं।

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