गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

कहीं कोई दिल ...


बड़े बड़े मॉल ,
बेल्जियम ग्लास से सजा शोरूम ,अल्ट्रा मॉडर्न लाइट्स ...
पाँव फिसलाते इतालवी फर्श ...
शोकेस पर लम्बे लम्बे सिल्कन गाउन पहनी गोरी मखमली बालाएं ...
कि छू लेने से कहीं मैली न हो जायें |
सो रहीं है , चुपचाप ...
अभी तक ...
चकाचौंध बाज़ार में
यह क्या सुस्त , मुरझायीं रौनकें ?
पुल के नीचे बहती नदी ... प्राय निष्प्राण ...
नहीं, नहीं ...
मृत्यु हो चुकी थी ... बल्कि |
सड़के / फ्लाईओवर ... तमाम सुपर इंजीनियरिंग के वावजूद,
निस्तेज ...
इंतजार करतीं बसें , मायूस सीली सीटें ...
काल बैसाखी हवा के थपेड़ो से कुछ खिड़कियों की कांच रुदाली कर रहीं है ...
पटरियों पर खड़ी कतार बंध इंजिने /ट्रेनें ...
अंदर झूलते पर्दे कुर्सियां ...
उफ़ न जाने, आपस में क्या बात करते रहते ?
स्कूल /कालेज की आत्मा ... तो दीवारों से चिपक कर रो चुकी थीं ...
उतनी बार,
जितनी बार पृथ्वी पर झड़ कर गिरते पीलें पत्ते ...
फूलों की क्यारियाँ मौसम को रोक कर आ रहीं थीं ...
कि
अभी , जाना मत ...
बच्चे ...
बच्चें आते ही होंगे !!
ब्लैकबोर्ड पर लिखा हुआ अलजेब्रा का वह हल
इस बात का द्योतक
कि
कठिन समस्याओं का हल सरल हो जाता है।
- निवेदिता दिनकर
19/04/2020