क्यों खदेड़ा जाता सरेबाज़ार ...
क्यों निचोड़ा जाता सर्पाकार ...
हर पल गिराना
वेदना देना ....
पाषाणहृदयता ...
क्या यही मेरा सार .....
हैरान सी ,परेशान सी ..
कुछ ढूँढती हुई सी ...
रात भर सोचती रही ..
आँखे सूजाती रही ...
पता है ,सब पता है ....
नहीं है कोई पार
क्या यही मेरा सार .....
तमाशा ही तो हूँ यारों ...
मुखौटा लगा के .....
फिर लगी मुस्काने ...
चहकने और चहकाने .....
गाने और बजाने .....
जज़्बात यूँ ही फिरते रहे ..
फिर एक बार ....
क्या यही मेरा सार .....
- निवेदिता दिनकर
zabardast
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