ऐ मौसम ,
तु खूब बिगड़
सर्दी तु, और बढ़
ओले गिरे,
घिरे रात
या फिर झमाझम बरसात ।
चाहे रख तु खुले किवाड़,
हो रौशनी या अन्धकार
धुप खिले,
या लू चले
मन में अब नहीं कोई बात
लेके चले हम कई सौगात ।
यादो के नाज़ुक मोड़ पर
हमारे दरमियान
क़तरा क़तरा
मंद मंद
आत्मीयता
मनुष्यत्व
हिला के अंतर्मन
ले लिया जब रुखसत
तब जाना
क्या होता कुदरती दर्शन ।
तब जाना
क्या होता कुदरती दर्शन ।।
- निवेदिता दिनकर
पुन: प्रकाशित साहर्दय ये पंक्तीयाँ ...
जवाब देंहटाएंयादो के नाज़ुक मोड़ पर
हमारे दरमियान
क़तरा क़तरा
मंद मंद
आत्मीयता
मनुष्यत्व
हिला के अंतर्मन
ले लिया जब रुखसत
तब जाना
क्या होता कुदरती दर्शन ।
आपकी रचना दर्शन का एकाग्र भाव दे रही है .. बहुत ही प्रभावी कुछ नया पढने के लिये ! .. सुन्दर , काव्य शिल्प
--------------------आभार ! साझा करने के लिये
सादर
अनुराग त्रिवेदी एहसास
बहुत आभार, अनुराग! जब मै मानसिक कष्ट से गुजर रही थी , यह रचना मेरे दिल के अन्दर से उपजी थी और मुझे थोडा शांति की प्राप्ति भी हुई थी .....
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