दादु के नये बने घर में तालाब था ...
तलब भी जगी
कि तैरना सीख लूँगी ...
कोशिश किया कई बार
पर तैरना नहीं सीख पायी ...
मुझे किनारे बैठकर तालाब में जाल डालकर ,
मछली पकड़ते हुए देखना बहुत अच्छा लगता
जैसे
अकेले बैठकर पेड़ पौधों से बात करना ...
बकरी के बच्चे, श्वान के बच्चे को देखते ही झट गोदी में उठा लेना
कान्हाई की दुकान से खट्टे मीठे लेमन चूस वाली गोली खाना
फल वाले दादु की दुकान में सजाये जार में हाथ घुसा कर बिस्कुट ...
छह फ़ीट कद काठी, गठीला बदन औतुल मामा ...
तालाब में डुबकी लगाते
और
तालाब के किनारे गड्ढों से
कभी केकड़ा
तो
कभी चिंगड़ी पकड़ लाते
हम किनारे बैठ खुशी से चिल्लाते ...
अबकी बार बड़ी मछली पकड़ो न, औतुल मामा ...
औतुल मामा से अपना रिश्ता आज तक समझ नहीं आया ...
वह माँ के भाई नहीं थे
क्योंकि माँ, मौसी सब औतुल मामा ही बुलाते ...
दिदिमा को औतुल मामा दीदी कहकर सम्बोधन करते ...
पर वह दिदिमा के भी भाई नहीं थे ...
शाम होते ही औतुल मामा आख़िरी वाले कमरे से लगा
सदोर में बैठकर बाँसुरी बजाते
या
फिर कैसे एक बार एक बाघ को मारा था , जब वह गाँव में घुस आया था ...
वाली कहानी सुनाते
टांड के ऊपर रखा बल्लम गवाह के रूप में अभी तक रखा हुआ था ...
औतुल मामा दिन में एक स्कूल में चौकीदार थे
और
रात को दादु को डिस्पेंसरी से लौटते वक़्त बड़ा सा एवरएडी वाला टॉर्च रास्ते भर दिखाते हुए लाते ...
औतुल मामा के पीठ पर चढ़कर कितने मेले देखें
और
तैरना सीखने के लिए कितने हाथ पैर मारे ...
पर
औतुल मामा, तुमसे रिश्ते की पेचीदगी आज तक नहीं सुलझ पायी !!
- निवेदिता दिनकर
चिंगड़ी : झींगा मछली
बल्लम : एक प्रकार का शस्त्र; मोटा छड़
दिदिमा : नानी जी
दादु : नाना जी
सौदोर : Outside the house, घर के बाहर वाला हिस्सा
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