बुधवार, 22 दिसंबर 2021

दौर




पत्थर को पूजने वाले,

पत्थर से आग पैदा करते करते,

पत्थर के हो गए ...

यकीं मानिये,
दौर यूँ चला यह
कि
बिन आँच के ही
स ब
झुलसते चले गए ... ...

- निवेदिता दिनकर

तस्वीर : मेरे द्वारा खींची दौर ऐ शाम की , लोकेशन : आगरा 

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021

क़लम और खुरपी में कोई अंतर ?

 


क़लम और खुरपी में कोई अंतर नहीं है,
सो कुछ छोटी फूलों सी गुदगुदी करती गुलाबी गुलदाऊदी कविताएं
तो कुछ लंबी लहराती लौकी नुमा ...
रहस्यमय भी क्योंकि इनकी पंक्तियां रात भर में बढ़/चढ़ सकती हैं।
स्पर्श में आते ही साॅटन के बेल की तरह भीतरी परत तक गुदगुदा कैसे जाती हैं,
यह तिलस्म शाय़द ही कोई शायर समझ/समझा पाए!!

और
अंदाज़ ए इश्क से कोसों दूर ...
या
क री ब ...??
को भांपकर
लौटती हूं,
बस स स ...
मुट्ठी बंद रखना, तब तक