शनिवार, 10 अगस्त 2019

खी खी खी खी ...











Image may contain: 2 people, people smiling, people sitting, child, outdoor and food





रात को खाना कैसे बनेगा ?
पढ़ाई का खर्चा कहाँ से आयेगा ?
गर्मी क्या होती है?
सपने किस चिड़िया का नाम है ?
हाँ , उड़ने वाली सारी चिड़ियाँ होती हैं ... 

और
लड़के मौड़ा और वह खुद मौड़ीं हैं ...
मछलियाँ पानी में नहाती हैं।
हाँ , बिस्कुट खाते हैं।
टूटे बिस्कुट भी खा लेते हैं।
नीचे गिरे झाड़ के खा लेते हैं।

किसी डर से डर नहीं
न किसी बात से मतलब ...

तुम्हारे घर में
जो दो गुड़िया है ...
हमें उन्हें हाथ लगाना बहुत पसंद है।

खी खी खी खी ...

हम है
दो बुद्धू बच्चियाँ ...

संध्या और सोनिया ...

सब्ज़ी तौलते उनके पापा मायूसी से कहते हैं ,
क्या करूँ ? अपने साथ लिए लिए फिरता हूँ ,
सुना है , शहर में बच्चा चोर का गिरोह आ गया है। 


- निवेदिता दिनकर
   ०९/०८/२०१९
 


तस्वीर : एकदम सच्ची वाली 

बुधवार, 24 जुलाई 2019

राशिद



'' राशिद,
कल आ जाना ... ''
बस कहने भर से वह ख़ुशी से चहक उठा था ।
'' आप ने कितने प्यार से राशिद नाम लिया ,
वर्ना तो लोग कबाड़ी वाला कर के ही बात करते है।"
गंधोराज नींबू
की
छह आठ बूंदो
ने ...
सूरत के साथ सीरत
भी बदल दी
ग्रीन टी की ...
- निवेदिता दिनकर
२३/०७/२०१९

बुधवार, 17 जुलाई 2019

जाल



एंगेल बना,
हैंगिंग गमले में टंगा चाँद ...
होठों से गुजरते,
दार्जिलिंग टी धीरे धीरे 
ढलान पर उतर रही थी ...
तुलसी ने मिटटी पर पूरा अधिपत्य जमा रखा था ...
जाल बुन दिया गया है
पर
वह नीली कांजीवरम साड़ी क्यों नहीं मिल रही ?

- निवेदिता दिनकर 

बुधवार, 10 जुलाई 2019

सबसे चतुर स्त्री



सबसे चतुर स्त्री
ह है
जो
घनघोर बारिश में
भीगकर
अपनी सरसों पीली गोटेदार सिंथेटिक साड़ी को
घुटने तक उठाकर ,
पूरी तारतम्यता से
अपने
दूध मुहे बच्चे को कसकर सिमटाय रखती है ...
दूसरा हाथ मटमैला झोला लिए ...
दौड़कर
पानी भरा सड़क पार करती है ...
पल्लू सरक चुका होता है ...
अध पेट खाया धंसा पेट शान से झलकता है
लाल गाढ़ी लाली दाँतों तक चिपकी हुई ... लगभग
बस तब ...
तब
यह चमकीली नाज़नीन बूँदे
कुबड़ी
कुरूप
मंथरा
लगतीं हैं ...

- निवेदिता दिनकर 

शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

नशा



बचपन में बादलों को दिखाकर
माँ बोलतीं,
'ठाकुर, ओखाने थाके '
यानि ठाकुर जी वहाँ रहते हैं ।
हवाई जहाज में
बैठकर,
ठाकुर जी कई बार दिखें ...
बादलों की खूबसूरती
और
उनका एक दूसरे के पीछे
दौड़ने भागने छिपने
में ...
लिखते सोचते
तुम्हारे
देह से लिपटे
हुए
पा रही हूँ ।
आज
नशा
करने का
बहुत मन है ...
आओं न, कुछ घूंट भर लें...
श श श
चुपके से
इन बादलों की ...
- निवेदिता दिनकर
04/07/2019

तस्वीर : हवाई जहाज़ के भीतर से , अहमदाबाद यात्रा 

सोमवार, 4 मार्च 2019

देश प्रेमी




ज़ोर से कीं ई ई की आवाज़।
और फिर एक तेज़ कुछ टकराने की। भागते हुए गेट की तरफ जाती हूँ । गेट खोलकर सड़क की तरफ नज़र दौड़ाती हूँ कि देखती हूँ थोड़ी दूर पर कोई एक्सीडेंट हुआ है। मैं दौड़कर पहुँचती हूँ , तब तक करीब कुछ और लोग भी पहुँच जाते हैं। दो लोग, करीबन साठ पैंसठ की उम्र के , सड़क पर गिरे हुए हैं और तर तर खून से सने हुए। सामने एक स्कूटर लुढ़का पड़ा है और पास में एक मोबाइक भी औंधी पड़ी दिख रही है। एक लड़का भी सामने बाउंड्री वाल के सहारे अपने पैर को मल रहा है।
यानि स्कूटर मोबाइक में ज़बरदस्त भिड़ंत।
मैं, उनमे से एक जमीन पर गिरे आदमी को उठाने के लिए एक साइड से पकड़ती हूँ और ... लेकिन वह सज्जन घुटने में ज्यादा चोट लगने से उठ नहीं पाते।
मजेदार बात दूसरी तरफ से उन सज्जन को उठाने के लिए कोई हाथ भी नहीं आता।
मैं देखती हूँ ,भीड़ और बढ़ गई है पर सब हाथ पीछे करें , जैसे कोई शूटिंग चल रही हो , और यह सब मज़े देखने आयें हैं। मैं इशारा करती हूँ , वहाँ खड़े कुछ लड़कों को , मगर वे इधर उधर देखने लगते हैं ।
नालायक भीड़ से एक बुजुर्ग आगे बढ़ते हैं , तो मैं उनको बोलती हूँ , कि आप रहने दीजिये। वहां मेरा भी एक कर्मचारी खड़ा दिखता है, मैं उसे नाम लेकर बुलाती हूँ सपोर्ट के लिए। खैर, फिर कुछ लोग बमुश्किल आते है , और मैं घर से दो कुर्सियाँ मंगवाकर , उनको एक पेड़ के नीचे बैठाती हूँ।
आग्रह करती हूँ उन दो सज्जन से , कि सामने ही घर है , चलिये ... पर वे कहते हैं , फ़ोन कर दिया है , और वह लोग आ रहे हैं।
थोड़ी देर में उनकी कार आती है , और वे चले जाते हैं।
अब देखिये , सड़क पर पड़े लहूलुहानों को तो उठाने के लिए कोई
देश प्रेमी आगे बढ़ता नहीं , और मारों, पीटों, यह ब्लॉक , वह युद्ध, फलाना स्ट्राइक ... जैसी शौर्य गाथायें ... हम खूब कर बैठतें हैं।
शर्म करों ...
जग जाओ , कल तुम कहीं गिरे पड़े होगे , ऐसे ही सब हाथ छुपाते मिलेंगें।
आगे , तुम जानों , देश प्रेमियों ...

- निवेदिता दिनकर 

शुक्रवार, 1 मार्च 2019

प्रिय ''अभि ''



मैं सोचने लगी
तुम्हारी तस्वीर देखकर 

प्रिय ''अभि ''

कि दुश्मनों के बीच 
पहुँचकर
कलेजे तो काम करने बंद कर देते हैं।
हाथ पैर दिमाग़ शिथिल पड़ जाते है।

तुम कैसे अडिग खड़े होकर सामना कर रहे होगे ?
तुम उनके प्रश्न का क्या खूब जवाब दे रहे हो ...
तुम्हारे हौसले को सलाम करने लायक भी नहीं हूँ , शायद ...

मैं तो केवल तुम्हारे हालात को सोचकर ही धड़कने बहत्तर की जगह एक सौ बहत्तर कर बैठी हूँ। 
मेरी तो हाथों की उँगलियाँ और पैर ठंडे पड़ चुके है।

तुम्हें एक सच्चा देश प्रेमी का तमगा भी नहीं दे सकती क्योंकि यह तुम्हारे लिए नहीं है।

अभी तुम्हें देने के लिए ऐसा कोई शब्द कॉइन नहीं हुआ है। 
भविष्य में हम करोड़ों देश प्रेमी कोशिश करेंगे कुछ , शायद ...

- निवेदिता दिनकर
  ०१/०३/२०१९

तस्वीर : ''पंक्तिबद्धता '', थार , जैसलमेर 

गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019

लघुप्रेमकविता 9




तुम निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचते हो ,
हज़ारो मीलों के फासले 
' करीब '
आकर पुतलियों से कहते है

"आओ , तसल्ली मनायें'' ...

- निवेदिता दिनकर 
तस्वीर : मेरे द्वारा खींची, गेटवे ऑफ़ इंडिया , मुंबई।

सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

तलब




कुछ लोगों से बात करने का मन करता है ...
कुछ लोगों से मिलने की इच्छा होती है ...
और
कुछ लोगों से प्यार हो जाता है।

मैं
अपनी इन दुष्ट चाहतों का पीछा कभी नहीं छोड़ती ...

'' सुबह '' की तलब जरूरी है , न ...

- निवेदिता दिनकर
 18/02/2019
तस्वीर : मेरी प्यारी बेटी ''बनी "

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

मुझे अपने में घोल ले ...



हल्के मीठे मौसम की झपकी ,
धूप की ठिठोली कच्ची पक्की.
मुई सौंधी बाताश के अधखुले अधर ,
मुलायम फुरफुरी आसमां का अगर मगर ,
झंकृत पानी के पाजेब ,
सकुचाते शरमाते धरणी कटिजेब ...
के सम्मिश्रण
के आँच
में
पकता है
वसंत ...
आह वसंत ...
री वसंत ...
मुझे अपने में घोल ले ,
ऐ वसंत ...
सुन ले, वसंत ...

- निवेदिता दिनकर
  14/02/2019

तस्वीर : मुग़ल गार्डन , राष्ट्रपति भवन , नयी दिल्ली

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

मध्य



सीने में ''धक् सा'' हो रहा हो ... 
का
कतई यह मतलब नहीं

कि 
प्रेम ...
यह 'टीस' भी हो सकती है।

शीतलता भरी
या
चुभती बर्फीली हवाएँ सी ...

के 'मध्य' नग्न षड़यंत्र है।

- निवेदिता दिनकर 
  12/02/2019

तस्वीर : मुग़ल गार्डन , राष्ट्रपति भवन , नयी दिल्ली 

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019

लघुप्रेमकविता ८


यह ओस की बूँदे जो ठहर गयी है न,
पतली पतली हरी दूब घास पर ...
बस ऐसे ही तुम ठहर जाना
मेरे हथेली की रेखाएं बन कर ...
इस बार ''माघ'' में गज़ब तपिश है।
- निवेदिता दिनकर

०५/०२/२०१९
तस्वीर : मेरे बागीचे से , आज की ही ...

सोमवार, 4 फ़रवरी 2019

लघुप्रेमकविता ७




उतरते उतरते धूप ने
मेरे भीगे केशों को देखा ...
सुखानेे आई थी
जब छत पर,
कि निर्लज्जता से वहीं टिक गया ।
" मेरे पास एक खूबसूरत देह भी है",
कह ही दिया ...
मैंने भी ।
बेचारा , मेरे आकर्षण से कैसे बचता ...

- निवेदिता दिनकर
  04/02/2019

तस्वीर : धीरे से उतरते, धूप की, मेरे छत पर ... लोकेशन : आगरा