शनिवार, 17 दिसंबर 2016

ज़िद्दी




ज़िद्दी ज़िद्दी ज़िद्दी 

हाँ हूँ 
यार, पगला जाती हूँ ...

आजकल 
बेकाबू टाइप हो जाती हूँ। 
कभी 
बहुत रोने का मन करता है |

अंदर सिसक रही हो जैसे  ... 
कच्चे घड़े को वापिस 
मिट्टी बनना हो वैसे  ... 

और
अब 

चीख चीखकर रोना चाहती है। 

रोने दो न  ... 
मिट्टी बनने दो न  ... 

- निवेदिता दिनकर  
  17/12/2016

तस्वीर : उर्वशी के आँखों देखी, लोकेशन : दिल्ली हाट  


रविवार, 11 दिसंबर 2016

प्यार में कभी कभी




जब मामूली हवा के झोकें के छुवन से सिहरन हो जाये , 
आप प्यार में है,
जब तन्हाइयों में अपने अंदाज़ से मुस्कान तैर जाये, 
आप प्यार में पड़े है, 
जब सामने से 'वो ' आ कर भी अपने में खोये रह जाये,
आप प्यार के परे है, 
  
जब आँच पर चढ़ी  भिन्डी जल कर ख़ाक हो जाये,
आप प्यार के सिरमौर है ...

- निवेदिता दिनकर 
  ११ /१२/२०१६ 

फोटो क्रेडिट्स : तुम्हारे लिए " दिन " मेरे दिल के आँखों से , लोकेशन मसूरी 

रविवार, 6 नवंबर 2016

मेरी नायिका - 6



कुछ दिनों पहले एक बच्ची " प्रीति " से मुलाक़ात हुई जो खूब बातें बनाती है, हँसती है, लड़ती है, मगर कमर के नीचे का हिस्सा शिथिल रहता है। उम्र १२ साल। बच्ची के पापा कहते है कि वह पैदा ही ऐसी हुई है। पापा सफाई कर्मचारी और माँ एक हॉस्पिटल में आया है। 
उस दिन उसको एक टेडी बियर और स्वीट्स दिया तो बहुत ही खुश हुई और अब मैंने उसको ड्राइंग शीट और कलर पेंसिल दिया .... और वह पढ़ेगी भी | 


क्यों मुस्कराती हो इतना, तुम?

और 
सब तिजोरियाँ भर कर भी 
कैसे 
मायूस 
है 
हम ...  

कैसे इतनी जान है, तुम में ?  

और  
कितने
खोखले  
बेजान 
है 
हम ... 

कैसे हँसती हो खिलखिलाकर, तुम?

और 
क्या कुछ न होते हुए 
भी 
ऐंठन   
के मारे 
हँस भी 
न पाते 
है 
हम ...

 वक़्त की तो फ़ितरत होती है करवट बदलने की, 
 क्या मालूम कब कौन सी करवट कोई जड़वत का कारण बन जाए 

सोचना जरा  ... 

- निवेदिता दिनकर 
  ०६/११/२०१६ 

तस्वीर : प्रीती अपने टेडी के साथ 

मंगलवार, 18 अक्टूबर 2016

सुन रहे हो, न



सुन रहे हो, न 
आज फिर तुम पास नहीं हो 
और 
कल करवा चौथ है। 

यूँ तो ऐसी कोई बात नहीं ... 
मुझे तुम याद तो भरपूर आओगे 
परन्तु ,       
आज सवेरे की हमारी चाय
उफ़, 
जब
आधी चाय मैंने गुस्से में छोड़ दिया 
और 
तुम बस सोच में कि 
अब कैसे ?

अच्छा, पिछली रात की साथ लॉन्ग ड्राइव,
और हाँ ,
तुम्हारे फ़ोन पर 
मेरी नौ मिस्ड कॉल 
पूछने पर,
कि यार, मोबाइल साइलेंट पर था। 

जान बूझकर 
मुझसे टकरा कर निकलना  ... 
मेरे गालों के पास तक आकर, 
फिर 
कानों में कुछ भी फुसफुसा देना  ... 

बाथरूम में 
गीली तौलिया,
औंधा पड़ा तकिया, 
अखबार का बेतरतीब पूरे बिस्तर पर पसरे होना,

मेरे 
करवे में क्या कुछ नहीं है  ......  
 बस,
अब बारी तुम्हारी,  

चौथ क्या दोगे ?

- निवेदिता दिनकर 
  १८/१०/२०१६ 

दोस्तों के नाम सांझा  ..कुछ कभी न भूलने वाली हमारी तस्वीरें   <3

सोमवार, 17 अक्टूबर 2016

अरे ओ चाँद



अरे ओ चाँद,
तु जितना खूबसूरत कल शरद पूनो को था, उतना आज भी अमृत बरसा रहा था और सच मान, आज भी भीगने से, मैं उतनी ही पल्लवित हुई। 
तेरे प्रेम से कोई न बच पाया 
और 
मैं ... 

मैं  तो ठहरी वावरी  ...
ठगी ठगी सांवरी ...
न कोई देस, न कोई धर्म 
है पावन प्रीत री ...

- निवेदिता दिनकर 
  16/10/2016
  
फ़ोटो  क्रेडिट्स : आज वॉक पर यह मनोरम दृश्य और मेरी ललचायी आँखे ...  

सोमवार, 19 सितंबर 2016

तमन्ना



एक फौजी के दिल की बात, जब वह दूर बैठे अपने परिवार के लिए सोचता है  ...  

तमन्ना है,
कुछ लम्हें मिले ...
तमन्ना है,
कुछ लम्हें और मिले ...
तमन्ना है, 

कुछ लम्हें और साथ मिले ...
तमन्ना है,
कुछ लम्हें साथ साथ मिले ... 


- निवेदिता दिनकर
  १९/०९/२०१६


तस्वीर: उर्वशी की एक शानदार कलाकृति  

बुधवार, 14 सितंबर 2016

शहरी



हुस्ने इत्तिफ़ाक़ से,
ज़िद्दे पूरी होती गई और शहरी होते गए  ... 

पाश पाश होते रहे और पाक़बाज़ी खोते गए ...         

- निवेदिता दिनकर      
  १४/०९/२०१६  

हुस्ने इत्तिफ़ाक़ -  सौभाग्य से, सुयोग, luckily 

पाश पाश - टूट कर चूर चूर हो जाना , broken in pieces 

पाक़बाज़ी - शुद्धता , सच्चरित्रता, purity 

तस्वीर: मेरी नज़र से 'पत्ती पर रुकी एक बूँद', लोकेशन : मेरा घर, आगरा    
                 

गुरुवार, 8 सितंबर 2016

बहेलिया



हमारी बेहिजाबी को बेअदबी का नाम न दे,
सुना है 
बहेलिया हिजाब में ही आता है ... 



- निवेदिता दिनकर

तस्वीर: दिनकर सक्सेना के सौजन्य से, लोकेशन : CK मार्किट , कोलकाता  

आहें



गुजरता हुआ देखूं जब तुझको,
आहें  ही भर पाऊँ ...
मुडके देख ले एक नज़र,
मैं ऐसे ही तर जाऊँ ...
मगर जाने क्यों लागे यह डर, 
टीस न रह जाये किसी पल ...

तु मुझे थाम ले वहीं !
कि देखता रह जाये हर बटोही !!

- निवेदिता दिनकर 

२६/०७/२०१६ 

फ़ोटो :  'इवनिंग वॉक'   मेरी नज़र  


मंगलवार, 5 जुलाई 2016

खेल



चलो  न,

अबकी बार 

मैं पुरुष 
और 
तुम औरत 

मैं हिमयुग के बर्फ़ की चादर 
और 
तुम सिलवटों में लिपटी सुरमई जरुरत

इस खेल का भी सुख लेकर देखते है,  न ... 

- निवेदिता  दिनकर 
  ०५/०७/२०१६ 

फ़ोटो :  एक दूजे में हम , लोकेशन: साइंस सिटी , कोलकाता 

मंगलवार, 7 जून 2016

मुमकिन




कितने सूरज 
कितने चाँद 
कितने आसमान 
कितने समुंदर 
कितने हिमालय 

अपने अंदर 
समेटे हुए है ... 

हाँ ...  
मुमकिन है 

यक़ीनन हम 
मुमकिन है ... 

- निवेदिता दिनकर 
  07/06/2016

तस्वीर : "NGO कर्त्तव्य" के हौसलों के साथ 
          मुझे कुछ सुखद और यादगार क्षण मिलें  ...

बुधवार, 25 मई 2016

छद्म




यह तुम हो या कोई बूँदों सा रूप धरा है 
मेरे लिए तो तुम्हारा  हर छद्म उन्मादपूर्ण है ...

- निवेदिता दिनकर   
  २५/०५/२०१६ 

फोटो क्रेडिट्स : मेरे आँखों से,  ट्रैन से गुजरते हुए भीगी भागी बूँदों के साथ कुछ सुखद पल   

गुरुवार, 5 मई 2016

खुशबू

यूँ महकी संदली खुश्बू तो फ़िज़ा में पहले कभी न थी,
लगता है 
यादों का दराज़ आज खुला रह गया होगा … 

- निवेदिता दिनकर 
  05/05/2016
फोटो क्रेडिट्स : Urvashi Dinkar

सोमवार, 25 अप्रैल 2016

लेबल



सुनो बंधु ,
आज तक तुम मुझे लेबल देते रहे   
'अशुद्ध' का 
और 
प्रतिबन्ध लगाते रहे 
मेरे हर मार्ग पर ...

पर 
अपने को न बचा पाए 
और सिद्ध हुए 

एक अशुद्ध से जना ... 
एक जना ... 

- निवेदिता दिनकर 
  25/04/2016

फ़ोटो क्रेडिट्स: उर्वशी दिनकर  

शनिवार, 9 अप्रैल 2016

कुछ पल


२०११ में लिखी थी, आप भी महक लें   ...

खूब थी वह खूबसूरत याद ..........
बेमिसाल बेहिसाब बेकाबू
जाने अनजाने बस गयी
भीनी मंद मंद मीठी मीठी
सराबोर कर के आज ...........

जैसे 
धुएँ के छल्लों में 
पहली कश ...
खूब थी वह खूबसूरत याद ..........
---" कुछ पल जो संजोये है...."

- निवेदिता दिनकर 
   ०९/०४/२०१६ 
तस्वीर: उर्वशी के हाथों का जादू ...  

रविवार, 20 मार्च 2016

दोस्ती के कितने रंग




दोनों एक बार फिर जन्में  ...

अधूरे थे 
पूरे हो गए ...

शायद 
कोई पुराना हिसाब बकाया था !!

- निवेदिता दिनकर 
   20/03/16 

सन्दर्भ : १६/०३/१६ को एक दुर्घटना में सचमुच हम( मैं और बनी) बाल बाल बचे  
तस्वीर : शैतानी करती "बनी", फ़ोटो क्रेडिट्स : उर्वशी दिनकर  

मंगलवार, 15 मार्च 2016

बेबुनियाद बातें



हमेशा काम की बातें
 या
 मतलब की बातें 
या 
फिर जरूरी बातें 
या
ऊँचे दर्जे की बातें ...  
कभी बेमतलब की या बेबुनियाद या गैर जरूरी बातें क्यों नहीं?

मसलन 
घर में कौन कौन है?
बेटी कितनी बड़ी हो गयी है?
स्कूल जाने लगी की नहीं? 
बेटे को बिगाड़ना मत ... 
उसकी चोट ठीक हो गयी की नहीं ... 
रुकसाना कैसी है?
अब और बच्चें मत पैदा करना !!
अम्मी ने क्या खाना बनाया?
अब्बू की खाँसी कैसी है?
तम्बाकू खाना कब छोड़ रहे हो?
वगैरह वगैरह ... 

आज कल यही बे सिर पैर की बातें कर रही हूँ 
और 
और 
फिर जगह जगह इन आधी अधूरी बातों की पैबंद लगा खूब जी रही हूँ  ...

बड़ा ही सुकून है, सचमुच  ...

- निवेदिता दिनकर     
  १५/०३/२०१६ 

सन्दर्भ : राह चलते मजदूरों से बतियाते हुए  
तस्वीर: देहरादून में कुछ बच्चें भिक्षुकों के साथ 

बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

चमत्कार



"अब मेरी पवित्रता भी तुम तय करोगे! 
क्योंकि यहीं परंपरा है!!" 

तो  ऐसा करों, 

सहनशीलता की मूरत बन के दिखाओ ...
नौ महीने कोख़ में रखो ...
संतान जनो ...  

 बस!!!  

वर्ना
बुला लाओ, सब धर्म गुरुओं को   
शायद, कोई चमत्कार हो जाए ...   

- निवेदिता दिनकर 
  १०/०२/२०१६ 

सन्दर्भ : स्त्रियों का शनि मंदिर, सबरीमाला मंदिर प्रवेश पर प्रतिबंध 
तस्वीर : उर्वशी दिनकर, लोकेशन : रामोजी सिटी, हैदराबाद  


गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

बर्फ ही बर्फ



एक : "जब मैं छोटा था, फ्रिज में से बर्फ निकालकर एक दूसरे भाई बहनों पर फेंका करता  था।"

दूसरा : "जब मैं छोटा था, हमारे घर में फ्रिज नहीं था और हम पड़ोस के घर से बर्फ लाकर शिकंजी में डाल कर पीया करते थे।"

तीसरा : "जब ठण्ड के मौसम में माँ मुझे रात को कहानी सुनाकर सुलाया करती थी, तो मैं उनसे चिपट कर गहरी नींद में सो जाया करता था।" 

चौथा : "जब  मैं मम्मी पापा के साथ गुलमार्ग घूमने गया था, कैसे मैंने बर्फ के गोले बनाकर अपनी बहन पर डाला था।"    

सारे : "मगर, क्या आज  हम इस बर्फ के कहर से बाहर निकल पाएँगे ??"

- निवेदिता दिनकर  
  ०४/०२/२०१६  
सन्दर्भ : सियाचिन ग्लेशियर 
तस्वीर : उर्वशी दिनकर, लोकेशन : भीमताल  

बुधवार, 3 फ़रवरी 2016

क्या नाम दूँ ?




यह तुम्हारे नर्म एहसासों का बोसा है 
या 
गुदगुदाते आगोश की संगमरमरी उल्फ़त      
या 
बेज़ुबान इश्क़  ...  

- निवेदिता दिनकर 
०३/०२/२०१६ 

तस्वीर :  उर्वशी दिनकर की आँखों ज़ुबानी  "बेज़ुबान इश्क़" 

बुधवार, 27 जनवरी 2016

नन्हीं आँखों में ...




आज शाम 
दौड़ते हुए कुछ बच्चे 
हाथों में गुब्बारे 
रंगीन कागज़ 
और 
तिरंगा 

चेहरों की 
मासूम ख़ुशी 
देखने लायक ... 
नन्हीं आँखों 
में जबरदस्त आशाओं की लहरें  ... 

यह बच्चे है 
अनामिका 
रवि 
वंदना 
मनोज 
चित्रा 

किसी के पापा फूल बेचते है 
तो किसी के पापा मिस्त्री या ड्राइवर 
 
दूर तक 
सजा गए 
मन  
माहौल 
और 
दीवारें ... 

- निवेदिता दिनकर 
  २६/०१/२०१६  

फोटो : शान से सजाता 'तिरंगा' एक बच्चा 

शनिवार, 23 जनवरी 2016

मोहब्बत



"मोहब्बत करते है!!" 
नहीं मालूम ...
"मैंने मोहब्बत किया" ... 
नहीं मालूम ...

सिवाय
तुम्हारा हसीन साथ
या सारंग का गात
जैसे पुष्कर सा सुकून
या गरल धारण शम्भू
जैसे मनमौजी बाताश 
या सरि सा एहसास

जैसे अकूत दौलत
या मन महोत्सव
जैसे लहरों पर अठखेलियाँ
या महकती मंडलियां
जैसे ग़ज़ल सी चंचल ख्वाइश
या छौना सी आजमाइश
जैसे अलंकृत दिनकर
या कनक सा कलेवर

और
साझे
अनगिनत लम्हें ...

- निवेदिता दिनकर 
  21/01/2016
तस्वीर : उर्वशी की आँखों से, "मोहब्बत", लोकेशन धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश   

शुक्रवार, 15 जनवरी 2016

और जब ...



अजीब सनक है 
या 
सनकी कहो 

न भेड़चाल पसंद 
और 
न भीड़ वाले काम ...

फितरत ही नहीं है ...
कही जाती हूँ 
हठी 
बेअदब 
बेशर्म 

जब रुकना चाहती हूँ 
कहा जाता है 'चलो'

और जब चलना चाहती हूँ 
कहा जाता है 'रुको '

जब बात करने का मन होता है 
तो 'कितना बोलती है'! 

और 
जब खामोश 
तो 
ज़लज़ला ... 

- निवेदिता दिनकर 
   १५/०१/२०१६ 

तस्वीर : उर्वशी की आँखों से 'स्फुटित' 

मंगलवार, 12 जनवरी 2016

मेरी नायिका - 5



मुँह अँधेरे निकल आना 
चाहे  हो कोई भी महीना 
जल्दी जल्दी पेट में 
कुछ डाल

हाथों में सीकों की झाड़ू 
पैरों में रबर की चप्पल 
बस, चल पड़ना ... 

आज बोली,
मेडीकल कॉलेज जाना है 
बच्चे का x ray होना है 
कुछ पैसे दे दीजिये 

पूछने पर बताया 
एक मरखन्नी गाय ने उसके दो साल के बच्चे के सीने पर पाँव रख दिया 
गंभीर चोटें आयी है। 
कहते हुए रोने लगी ...

मेरी आज की दिलेर नायिका 
नाम मिथिेलेश 
उम्र करीबन तीस बत्तीस साल 
काम सड़कों पर झाड़ू लगाना, कूड़ा बीनना ...

और हम 'अभियान अभियान' खेल रहे है!! 

- निवेदिता दिनकर
  12/01/2016