आहें



गुजरता हुआ देखूं जब तुझको,
आहें  ही भर पाऊँ ...
मुडके देख ले एक नज़र,
मैं ऐसे ही तर जाऊँ ...
मगर जाने क्यों लागे यह डर, 
टीस न रह जाये किसी पल ...

तु मुझे थाम ले वहीं !
कि देखता रह जाये हर बटोही !!

- निवेदिता दिनकर 

२६/०७/२०१६ 

फ़ोटो :  'इवनिंग वॉक'   मेरी नज़र  


मंगलवार, 5 जुलाई 2016

खेल



चलो  न,

अबकी बार 

मैं पुरुष 
और 
तुम औरत 

मैं हिमयुग के बर्फ़ की चादर 
और 
तुम सिलवटों में लिपटी सुरमई जरुरत

इस खेल का भी सुख लेकर देखते है,  न ... 

- निवेदिता  दिनकर 
  ०५/०७/२०१६ 

फ़ोटो :  एक दूजे में हम , लोकेशन: साइंस सिटी , कोलकाता