गुरुवार, 25 जून 2015

छोटी बहन



छोटी बहन का होना जरूरी ही नहीं अपितु खुदा की नेमत है। हमेशा ही मैंने उस पर राज किया और उसने मेरे दिल पर। 

बचपन में कोई भी काम करने को होता था तो मैं दीदीगिरी दिखा कर काम करवा लेती। इसके बदले कभी टॉफी, कभी चॉकलेट, कभी एक रुपया का सिक्का ही काफी होता। उसको चाय बहुत पसंद है इसलिए उसने बनाना भी सातवीं क्लास के आसपास सीख लिया होगा। जब भी माँ कहीं बाहर जाती थी, बस पहला काम तुरत फुरत चाय बनाती  और फिर पैन को वापिस धोकर यथास्थान रख देती  जिससे माँ को पता न चल जाये। मगर इसके वावजूद माँ पता कर लेती , पता नहीं कहाँ सुराग छोड़ आती थी !!
स्टेट लेवल एथलीट रह चुकी है, इसलिए घर, नौकरी, अपना फैशन इंस्टिट्यूट में भी पूरा एथलीटी तारतम्य है। कत्थक निपुणा पाक शास्त्री भी है। इसलिए लजीज पकवान का मज़ा भी पूरा देती है।   

अब ऐसी गुणों की खान बहन का होना कितना सुखदायी होता है, जैसे कि तेज़ धूप में फुहारें, जैसे कि शाम उतरते एक प्यारी सी ग़ज़ल, जैसे कि तन्हाई रात में परियों की कहानी, है न …
- निवेदिता दिनकर 
   २५/०६/२०१५

बुधवार, 24 जून 2015

मायका

   

मायका यानि प्यारे एहसासों का प्रशांत महासागर। मायका यानि हिमालय से भी ऊँचा बेटी का अभिमान। 
गुरुर। कुछ दिनों में ही तरावट आने लगती है। खट्टी मीठी स्मृतियाँ और भावुक कोनेँ । 

रजनीगंधा सी महकती माँ और मेरे में रची बसी उनका हर कोण। 

आजकल सुबह से दोपहर से शाम से रात, कोशिश, पलो को न जाने देना और तबियत से मायके का रग रग पान करना जिससे दोबारा वापिस आने तक मेरी आत्मा बेला चम्पा सी प्रफुल्लित और तरोताज़ा रहे ...
साथ मौसम बखूब दे रहा है, बूँदो से हरी हरी पत्तियों में जान आ गई है और ह्रदय में प्रीति की अंगड़ाई की कोमल कसक के तो क्या कहने !!   
- निवेदिता दिनकर 
   24/06/2015  

शुक्रवार, 19 जून 2015

पद्मावती जयदेव


आज बहुत दिनों बाद माँ के श्रीमुख ने एक खूबसूरत रोचक कहानी सुनाई  
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जब श्री कृष्ण भक्त संस्कृत महाकवि जयदेव ने सोचा कि उन्हें कृष्ण के लिए कुछ लिखना चाहिए मगर वर्णन गीत द्वारा होना चाहिए। तब उनकी पत्नी पद्मावती कहती है कि ठीक है, आप बिना  किसी बिघ्न बाधा के कार्य शुरू कीजिये और जयदेव एक कमरे में अविराम निराहार अनिद्रा में महीनो गुजार देते है। 
 पद्मावती को उत्सुकता हुई तो एक दिन पद्मावती जयदेव से  पूछती है, स्वामी, इतने महीनें गुजर गए, क्या आपकी रचना अभी तक पूरी नहीं हुई ? 
जयदेव बोलते है कि पता नहीं क्यों , मैं किसी भी प्रकार से अपनी रचना के अंत तक नहीं पहुँच पा रहा  हूँ ?  तत्पश्चात पद्मावती कहती है ठीक है , आप नहा धो कर थोड़ा विश्राम कर लीजिये, तदुपरांत लिखना प्रारम्भ कीजिये, आप अंत तक पहुँच जायेंगे। जयदेव ऐसा ही करते है ।
 अब जब जयदेव वापिस अपने कमरे में काव्य पूरी करने पहुँचते है तो अपनी लिखने की किताब को बंद पाते है। अचंभित अपनी पत्नी पद्मावती से पूछते है कि उनके पीछे क्या कोई आया था ? पद्मावती कहती है कोई भी तो नहीं आया सिवाय उनके।  
आगे पद्मावती कहती है कि आप ही तो आये थे यह कहकर कि, उन्हें अपने काव्य का अंत मिल  गया है । 
यह सुनकर जयदेव दौड़ कर अपनी लिखने की किताब का आखरी पन्ना पलटते है तो लिखा पाते है     "देहि पद पल्लव मुदा रम" यानि श्री राधा के चरण कमल पर श्री कृष्णा सर झुकाते है । 
अरे ! तो क्या स्वयं श्री कृष्ण आये थे  …  
इस प्रकार जयदेव की महान  कृति ‘गीत गोविन्द’ की अनुपम साहित्य अभिव्यक्ति हुई । 
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आज माँ से 'पद्मावती जयदेव' की यह कथा सुनकर आपके समक्ष न लिखकर रहा न गया …  

- निवेदिता दिनकर 
  १९/०६/१५ 
फोटो : Radha and Krishna in Discussion (An illustration from Gita Govinda) 

बुधवार, 17 जून 2015

बेकरारी



अरे सुनो,
बेचैन रात की रानी की मादक खुश्बू मुझे जगा रही है 

और 

मुझे जगे रहना है ता गुलाबी लम्हा … 

-  निवेदिता दिनकर 
   17/06/2015

फोटो क्रेडिट्स - दिनकर सक्सेना , लोकेशन - नौकुचिअताल 

शनिवार, 6 जून 2015

खरा सच


अगर प्यार है 
तो बस सच है  … 

अगर मौन है 
तो बस सच है  … 

बस , कहीं देर न हो जाये !!

 - निवेदिता दिनकर 
   06/06/2015
फोटो क्रेडिट्स - उर्वशी दिनकर , लोकेशन नौकुचियाताल 

शुक्रवार, 5 जून 2015

हाय, यह समझ !!


"क्या तु समझती नहीं 
कि 
मैं तुझे पसंद नहीं करता, 
जानकर तेरे से बात नहीं करता, 
दिन रात अवहेलना करता हूँ ..."
अथाह  दर्द, सूखी आँखों से रिसते आँसू जो भाप बन चुकी है 
और शून्यता में झूलती  
औरत, बीवी , माँ 

बस सहनशीलता की पुजारी,
अपनी चींखों को खुद सुनने का भी नहीं कर सकती दुस्साहस … 
सुबकना मत 
बस 
तड़प, थोड़ा और तड़प, थोड़ा सा और  … 
फिर यह आदत में तब्दील। 

मैं नकारा,
बददिमाग,
आलसी,
औरत पर शारीरिक मानसिक अत्याचार करने वाला  
पर 
पुरुष … 
समझी !!
  
यह कहकर उसने मेरा सिर बार बार दीवार पर दे मारा  

- निवेदिता दिनकर 
   05 /06 /2015