शनिवार, 27 दिसंबर 2014

असम




असम के बारे में न्यूज़ देखते देखते मन रुआँसा हो गया। कौन है यह बोडो ? क्यों चाहिए बोडो लैंड ?
कितने नरसंहार और कब तक ? इन लोगों की आत्मा जागती नहीं ? क्या यह मनुष्य नहीं ? क्या गरीबी मूल कारण  है ? या निरक्षरता या बेरोजगारी या कोई कलुषित राजनीति ? 
एक रणवीर सेना भी हुआ करती थी , ताबड़तोड़ गोलियाँ , कुछ दिन अखबारों की सुर्खियां फिर एक और काले दिन का इंतज़ार । 
अब इतने कलियट तो हो गए है कि पहचानना भी मुश्किल। 
अब तो काली स्याह रात को भी पीछे छोड़ दिया, दानवों । 

- निवेदिता दिनकर 
  २७/१२/२०१४     
तस्वीर उर्वशी दिनकर के सौजन्य से "अलमस्त" , लोकेशन भीमताल 

1 टिप्पणी:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (28-12-2014) को *सूरज दादा कहाँ गए तुम* (चर्चा अंक-1841) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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