शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

चन्द्रमा



देखों, क्या …
गज़ब का आकर्षण,
रौशनी की अमृत वर्षा …
समुद्री उफान बन
ज्वार,
भाटा बन सिमटना  …
प्रेममय चाँदनी रातें,
अँधेरी वियोगी बातें  …
कोजागरी पूर्णिमा,
पौष पूर्णिमा,
तीज़ त्यौहार,
करवाचौथ मनुहार  ...
कवि की कल्पनाऐं,
हसरतें कसमसाय  …

छल, कपट 
साजिशें, लीलाएं  
मोह, माया,
किस्से कहानियाँ  


उफ्फ …
चन्द्रमा का खेल कितना तिलस्मी है।
है न ॥
- निवेदिता दिनकर 
   २९/०८/२०१४ 

शनिवार, 16 अगस्त 2014

धड़कन



रातों का झुरमुठ, 
गहरी भूरी धुंध,
चलती चली
मेरी 
'धड़कन' … 
घाव हरे, 
छोड़ दायरे  … 
तार कंटीले,
पाॅव मटमैले  … 
जिद्दी प्यास 
खोकर होशोहवाश …  

जस तस  
खींची एक 
ठंडी सांस 
और  
पहुंची 
इस बार 

देखने
करारे 
नए सपने  … 
करारे 
नए सपने  …  

- निवेदिता दिनकर