#मात्रमात्राओंकाखेलहै #निवेदिन
कविता में विज्ञान और विज्ञान में कविता देखने वाले डॉ. विनोद तिवारी भौतिक विज्ञान के शोध कर्ता और काव्यालय https://kaavyaalaya.org/ के सम्पादक हैं जिन की ईमेल द्वारा भेजी चिट्ठी पढ़ने के बाद साँझा किये बिना नहीं रह सकी |
भौतिकी में शोध कार्य के लिये उन्हें प्राइड आफ इंडिया पुरस्कार, अमरीका सरकार का पदक, और लाइफ-टाइम-एचीवमेंट पुरस्कार मिल चुके हैं एवं कई बरसों से Boulder, Colorado; USA में रहते हैं |
निवेदिता का नगीना - एक अत्यंत उत्तम काव्य संग्रह
आप सबसे यह समाचार साझा करने में मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है कि अपने कुटुंब की प्रिय और कुशल कवयित्री निवेदिता दिनकर (Nivedita Dinkar) का अत्यंत उत्तम काव्य संग्रह " मात्र मात्रा का खेल" अभी हाल में ही नोशन प्रेस ने प्रकाशित किया है। इसके आवरण का चित्र संलग्न है।
इस पुस्तक की एक विशेषता यह है कि इस पर एक नज़र डालते ही कर मन के अंदर गहराई में कुछ "छू" जाता है। पुस्तक का नाम, उस का आवरण चित्र, चित्र में रंगों का सुन्दर समन्वय और उनमें निहित एक काव्यात्मक सन्देश, से मन तरंगित हो जाता है। चित्र की सादगी और भावनाओं की गहनता ऐसी है जिनसे पहली झलक में ही पुस्तक मोह लेती है। इसका आवरण चित्र ऐसा ही प्रभावकारी है। यह चित्र निवेदिता की बेटी उर्वशी ने बनाया है, जो अपनी माँ की तरह ही कुशल कलाकार लगती है।
पता नहीं उर्वशी या निवेदिता के मन में चित्र बनाते समय क्या भावना रही होगी। मेरे मन में चित्र देख कर जो तत्काल भावना उठी, वह लिख रहा हूँ। इसमें पांच फूलों को संभाले हुए एक मानवीय हाथ है। यह एक सशक्त प्रतीक है जो कितना कुछ कह जाता है। पांच की संख्या गणित में विशेष होती है। यह Fibonacci श्रृंखला की पांचवें क्रम पर पांचवी संख्या है (शून्य के बाद) जो स्वयं 5 के बराबर है । भारतीय दर्शन और काव्य में भी पांच की संख्या का विशेष महत्व है। जैसा तुलसी दास ने लिखा है, "क्षिति, जल, पावक , गगन , समीरा; पंच तत्व जे रचहिं शरीरा।" चित्र में पांच फूलों को जोड़ता हुआ एक मानवीय हाँथ है जिसकी 5 उंगलियां मानव शरीर के इन्ही पांच तत्वों का उल्लेख करता है। साथ ही "हाँथ" में यह सकारात्मक सन्देश है कि कर्म करना मनुष्य का धर्म है। इतने सुन्दर भाव और उसमें गणित और काव्य का इतना सुन्दर समन्वय। स्पष्ट है कि चित्रकार और गीतकार दोनों ही अपनी अपनी कला में प्रवीण हैं।
आवरण पर नमूने के रूप में एक कविता छपी है, उसी से पता लगता है कि पुस्तक की अन्य कविताएं कितनी गहन और सार्थक होगी । इस कुटुंब में हम सभी निवेदिता की कविताओं के काव्य कौशल से परिचित हैं। निवेदिता की कविताएं मौलिक होती हैं, और प्रत्येक कविता में एक विशेष भाव होता है । उनमें समाज की कुरीतियों के प्रति एक विद्रोह और एक सकारात्मक शिकायत होती है । उनमें पीड़ा झलकती है किन्तु पराजय नहीं । आवरण की यह कविता, निवेदिता की अन्य कविताओं से भी अलग है, और, मेरे विचार में, विशेषतम है। निवेदिता शब्द संयोजन और छवि चित्र में तो प्रवीण है ही । इन कलाओं की छटा इस नमूने में देखिए : समाज की संवेदनशीलता कम हो गई है - इसकी साफ सुथरी मगर पुरअसर शिकायत: "सिहरन तो किसी बात से नहीं होती" - यह इस युग की ट्रेजेडी है। यह छवि चित्रण देखिए: "कांच पर धूल जमती रहती है" यह एक विवश सत्य है जिस पर शायद कोई कुछ कर नहीं सकता । कांच का रूपक भी बहुत सार्थक है : कांच कमजोर लगता जो सरलता से टूट सकता है किन्तु जब व्यक्ति विवश होता है तो उस पर भी कुछ किया नहीं जा सकता । बस धूल जमते हुए देखते रहना पड़ता है । इस विवशता की पराकाष्ठा यह कि हमें सब स्वीकार करना पड़ता है । क्योंकि एक और विवशता है कि "आँखों पर पट्टियां बाँधी जाती हैं/रहेंगी।" लगता है हालात बदलेंगे भी नहीं; बदलेंगे कैसे जब हमे सिहरन ही नहीं होती । तब हमें सब स्वीकार करना पड़ता है । जब संवेदना की शक्ति ही समाप्त हो गई तो क्या कोई आशा शेष है? यह पूरी कविता का कथ्य है ।
अंत में निवेदिता का शब्द संयोजन और यमक अलंकार का मधुरतम उपयोग देखिए । समाज में परिवर्तन लाने के लिए सिर्फ "कविता" पर भरोसा हो सकता था । क्योंकि सुनते आए हैं कि "कविता परिवर्तन का कारक होती है"। किन्तु अब तो कविता भी "मात्र मात्राओं का खेल है ". "मात्र और मात्रा" । यह है इस नगीने के सौन्दर्य की चरम सीमा, कविता में कथ्य की क्लाइमैक्स।
बेटी उर्वशी और कवयित्री निवेदिता को ऐसे उत्तम काव्य संग्रह के लिए हम सबका प्यार और बधाई।
(प्रस्तुत कर्त्ता : विनोद तिवारी )
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