गुरुवार, 20 अक्टूबर 2022

कितनी गिरहें खोली हैं मैंने



 #फिल्मउत्सव

नवीं दसवीं में सि एस आर, चंदामामा, पराग पढ़ते पढ़ते कब मायापुरी, सिने व्लिटज, स्टार डस्ट , डेबोनेयर, के माया जाल में फंसी पर फंसते हुए मज़ा बखूब आया !!

' दुल्हन वही जो पिया मन भाए ' यूं तो प्रसाद टाकीज़, बरेली में मेरी ज़िन्दगी की पहली फिल्म थी और जिसके देखने के बाद मम्मा ने चावला रेस्टोरेंट के दो गरम गुलाब जामुन खिलवाये थे। ओह, देखते ही ललचा गई और खाते ही जीभ जल गया पर आह आह करती रही और फिर गुड़ूप से खा लिया। मां ने वह दिन आउटिंग करवाकर खास बना दिया था।
खैर, गुलाब जामुन पर पोस्ट नहीं है यह, यह सिनेमा से प्रेम के शुरुआती दिनों की कहानी है।
क ई सालों से चल रही इस लुकाछिपी प्रेम को बाहर आना ही था, कस्तूरी मंच ने फिल्मों पर सार्थक चर्चा परिचर्चा शुरू किया और मेरे अंदर कुलबुलाहट ने।

मेरी प्यारी निर्देश निधि Nirdesh Nidhi दी ने रश्मि, विशाल से मेरा नंबर शेयर किया और मुझे जो खुशी हुई/मिली, यानि अथाह ...
कस्तूरी मंच ने पहले रेखा जी ओम पुरी जी की फिल्म 'आस्था' के लिए मंच प्रदान किया, जिसमें मेरी अनु सुंदरी Anu Chakraborty और जितेंद्र श्रीवास्तव जी शामिल हुए और फिर रेखा जी की ही एक और सजी धजी खूबसूरत फिल्म 'उत्सव' के लिए मंच मिला।

उत्सव के लिए तैयारी मैंने इतने मनोयोग से किया कि सीन दर सीन याद हो ग ए, जबकि मेरे पर्सनल फ्रंट पर बहुत कुछ तेजी से चल रहा था। रश्मि मुझे फ़ोन करतीं, मैं या तो फोन नहीं उठा पाती या मैं बनारस या गुड़गांव के हास्पिटल से वाट्स ऐप कर टेक्स्ट करती, कि आगरा लौटकर बात करती हूं।
बहरहाल, मुझे बहुत मज़ा आया उत्सव पर बात करते हुए क्यों कि मुझे समय मिल गया था और मैंने शिद्दत से महसूस किया उत्सव की उत्सवधर्मिता को।

फिर वह किताब के रुप में अलंकृत हुई, " कितनी गिरहें खोली हैं मैंने "...
संपादकीय रश्मि सिंह रश्मि सिंह व विशाल पाण्डेय विशाल पाण्डेय का। भूमिका हम सबकी प्रिय चंद्र कला त्रिपाठी जी Chandrakala Tripathi ने सुप्रीमली लिखी है।

कलमकार पब्लिशर्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में अठारह(मुझे मिलाकर उन्नीस) महत्वपूर्ण और सशक्त हस्ताक्षरों की भागीदारी है, जिन्होंने जिस तरह उन तमाम फिल्मों ( जिस पर उन्हें लिखना गुनना था) को देखा, परखा, पलटा जो न केवल काबिलेतारिफ है वरन् एक अलग पहचान की परिभाषा भी है जो आपको एक नए दृष्टि से अवगत करवाती है। सिनेमा पर रुचि रखनेवाले तमाम पाठक एक नये परिपेक्ष को जरूर पायेंगे , इसमें कोई संदेह नहीं।
पूरी कस्तूरी टीम का तहे दिल से शुक्रिया अदा करती हूं, इस्तेकबाल करती हूं और भविष्य में सबसे और अधिक जुड़ना चाहती हूं।
कामना करती हूं आप सब अच्छे व स्वस्थ रहें
इति
निवेदिता दिनकर
१९/१०/२०२२

तस्वीर: पुस्तक "कितनी गिरहें खोली है मैंने" के साथ मेरी डायरी की जिसमें 'उत्सव' फिल्म पर नोट्स लिखीं हैं।

रविवार, 16 अक्टूबर 2022

महसा अमिनी...





 महसा अमिनी ...

तमाम रंजिशे चलती रहती हैं | विद्रोह करते चलते हैं |

"क्या मुझे निस्सहाय और कंगाल जानकर तुमने आज प्रतिशोध लेना चाहा ?" जयशंकर प्रसाद की यह पंक्तियां कई बार बराबर से निकल जाती हैं ... तो कई बार बस अब ख़त्म ...

भयानक आंधी से निबटने को कहाँ कोई तैयारी है/ होती है पर खुर्राट चुस्त बना दिए गए इन आधारों के बदौलत | तनिक देर सुस्ताने को मिलना भी जब रस्साकशी में बदले तो भी इसे व्यर्थ नहीं समझ कर क्षमा कर देना उचित है |

बिखरा हुआ सामान बांधने में समय लगता है | बारिश, बारिश, बारिश, के बाद धूप की एहमियत कितनी बढ़ गयी , है न !!! यह धूप से आँखे चौंधिया नहीं रही बल्कि मुख और मिज़ाज़ प्रसन्न हो रहा है |

अब अपराध बोध के मायने बदल कर रख दिए एक तरफ , बिलकुल निर्मम ... सिसकियाँ फेंक दी कहाँ , नहीं पता ...

नाचती हुई खिलखिला उठती हूँ अब!!
जब तब !!!

- निवेदिता दिनकर
१४/X /२०२२