शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

शहर में वसंत

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शहर में वसंत घुला हुआ है |
ऍफ़ एम् वाले गा कर
तो
अख़बार वाले शुभकामनायें पेश कर दुनिया को बता रहें है |
सोशल साइट भी आगे बढ़ चढ़ कर सरसों के खेत ,
आग यानि पलाश के कसीदें
और
माँ सरस्वती की वंदना से गुंजायमान को पेश करने की होड़ में
लाइक्स लव्स बटोर रहें हैं |
गली की नुक्कड़ पर
तीन औरतें
शाम काम से लौटती,
कौन किस तरीके से आज पिटीं ... पर हँसते हुए पायीं गयीं |
शहर में वसंत घनघोर घुला हुआ है ...
- निवेदिता दिनकर
  ३०/०१/२०२०

सोमवार, 27 जनवरी 2020

तु इस वक्त भी ...

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कभी तेरी ओढ़ी रजाई मुझे गर्माहट दे जाती है 
और 
जेठ की ऐंठन में पहुँचाती हैं ।
कभी तेरे उतारे जूते मुझे बताते हैं मीलों चले चाँद
और सुनाते हैं ढेरों ऐसे ढब बेढब शहर
जो तुने जूते के पैतावे में छुपा दिये हैं ।
पता चलने नहीं देगा
पर
तु इस वक्त भी तारों से आसमान लाने के लिए जुटा होगा ...
- निवेदिता दिनकर
  08/01/2020

चित्र : एक अकेला थकेला चाँद 

शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

कमाल है ...



कमाल है,
यहाँ सब गद्दार है ।
एक पेड़ ने दूसरे पेड़ से कहा ...
कि कलम दवात खेल रहें हैं ... खूब
कि आज कल खेल चरमोत्कर्ष पर ...
तो क्या अब हमें यह गद्दार काटेंगे नहीं?
नहीं, अब आपस में ही काटम काट चल रहा है ...
पर इनके फ़ितरत की फिक्र है, बंधु !!
बाकमाल यह,
कभी भी किसी करवट बैठ सकतें हैं, बंधु !!!
- निवेदिता दिनकर

सोमवार, 6 जनवरी 2020

कम्बख्त हठी ...




कुछ बातों की हिस्सेदारी नहीं होती ,
बिलकुल दास्तानों की तरह ...
कश्मीरी कहवा हलक से उतरते ही मीठी हो चली।
बादाम का असर का आसार भी ...
हौले हौले मन के फ़िज़ा में कोई दस्तक देने लगा।
डल झील ...
शिकारा राग बिलावल में कोई गीत की तैयारी करता हुआ ...
सर्द बर्फ़ीली या सीली हवा ... चुभने लगी या चूमने ...
पता नहीं ...
दो जोड़ नंगे पैर या बर्फ की सिल्ली ,
धड़कनें स्पीड बोट ...
हाथ गरम चिमटा ...
क़ैद में केवल गरम साँसे |
फ़िजा बदलने लगी ...
कैफेटेरिया का स्टुअर्ड सामने मुस्कराता हुआ ,
उँगलियाँ कहवा में डूबी हुईं ...
सिज़ोफ्रेनिया दास्तानें कम्बख्त हठी बहुत होतीं हैं ...
- निवेदिता दिनकर
  ०२/०१/२०२०