शनिवार, 6 अक्टूबर 2018
सोमवार, 1 अक्टूबर 2018
थार
इस बार थार से लौटने पर,
'थार' चला आया साथ घर ...
बालू के टिब्बें, ऊंट, भेड़, बकरी,
कोई भी नहीं रहा बाकी ...
वह सूर्यास्त का सुनहरा दृश्य,
बलिहारी जाऊँ ...
पीछे पीछे वह जनाब भी घर तक |
कीकर, टींट,फोगड़ा, खेजड़ी, रोहिड़ा
के
वृक्ष
तो दौड़कर
मेरे से पहले ही जम गये थे |
यह एक जटिल परिघटना है |
अलादीन के चिराग का जिन्न
फिर प्रकट हुआ है ...
माँ के गोद में सर रखकर सुनती
'पारस्य रजनी'
वाली लड़की ...
श श श ..
... बस, अभी अभी सोयी है।
- निवेदिता दिनकर
तस्वीर : अप्रतिम लालिमा, थार मरुस्थल, जैसलमेर
मेरे मोबाइल कैमरे के सौजन्य से